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तभी उनमें से एक इतिहास मर्मज्ञ गिद्ध चिल्लाया—इतने नीच नहीं हैं हम, जब सीता मैया का अपहरण कर रावण उन्हें लंका ले जा रहा था, तब हमारे प्रपितामाह जटायुजी ने उनकी रक्षा करने हेतु लहूलुहान होकर अपने प्राणों का परित्याग कर दिया था और ये अखबार वाले? इन नीच लड़कों की तुलना हमसे करते हैं? एक बार फिर समवेत स्वरों में वे चिल्लाने लगे।
दूसरा चिल्लाया—हमारी दृष्टि की तारीफ तो सारी दुनिया करती है और एक ये हैं? कह...गुस्से में आकर अपने पंख फड़फड़ाने लगा।
तभी उनके बीच से एक जागरूक बूढ़ा गिद्ध उठकर बोला—तुम सबकी बातों में दम है मेरे बच्चो, तुम सभी को अपने हक में जरूर आवाज उठानी चाहिए। माना कि हम नरभक्षी हैं, मांस हमारा प्रिय आहार है पर हम तो मरों को खाते हैं, पर ये? हरामी की औलादें तो जिंदों को ही खा डालना चाहती हैं।
—इसी संग्रह से
जीवन की अव्यक्त अभिव्यक्ति को व्यक्त करने का प्रयास करती इन छोटी-छोटी ट्वीट कहानियों के माध्यम से लेखिका ने जीवन की छोटी-छोटी, लेकिन महत्त्वपूर्ण समस्याओं को सुलझाने के लिए जिंदगी का ताना-बाना बुनने का प्रयास किया है। इन कहानियों के कथ्य कैसे हैं? फंदे कैसे पड़े हैं? बुनावट कैसी है? कहानियों का भाषा-संयोजन कैसा है? यह देखना अब आपका काम है। वैसे भी चिड़ियों के समान ये कहानियाँ भी चहककर ट्वीट-ट्वीट कर रही हैं।
ये छोटी-छोटी कहानियाँ आपको अपने आसपास के परिवेश, अपने संबंधों, अपने मनोभावों का आईना ही लगेंगी।
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अनुक्रम
समीक्षा — Pgs. 7-13
हृदय-स्पंदन (अपनी बात) — Pgs. 15
1. बूढ़ा-बुढ़िया — Pgs. 19
2. मोबाइल की आत्मकथा — Pgs. 21
3. गिद्ध — Pgs. 23
4. अब अभिमन्यु नहीं मरेगा — Pgs. 25
5. नन्हे-नादान — Pgs. 27
6. देवालय या मूत्रालय — Pgs. 28
7. वो टपकती झोंपड़ी — Pgs. 29
8. क्या करूँ? — Pgs. 31
9. निर्भया की माँ — Pgs. 34
10. कंप्यूटर के सामने बैठा आदमी — Pgs. 35
11. लाईक पर लाईक — Pgs. 37
12. महिला-दिवस — Pgs. 39
13. गुलाम — Pgs. 40
14. मैं नन्ही सिंड्रेला — Pgs. 41
15. टी.वी. का बालक — Pgs. 43
16. कमल — Pgs. 45
17. पहली चोरी — Pgs. 47
18. पेड़ उगना चाहते हैं — Pgs. 49
19. कविता? — Pgs. 51
20. गले में घंटी — Pgs. 52
21. राधा — Pgs. 54
22. अंडासेल — Pgs. 55
23. आँखों में समंदर — Pgs. 57
24. ईश की माँ — Pgs. 59
25. मन मानता क्यों नहीं — Pgs. 62
26. मुसकराहटें — Pgs. 64
27. 3 बी.एच.के. 65
28. ए.टी.एम. मशीन — Pgs. 68
29. गरल — Pgs. 71
30. सफेद चादर — Pgs. 74
31. माँ और गौरैया — Pgs. 76
32. पता नहीं — Pgs. 78
33. गुडबॉय डार्लिंग — Pgs. 81
34. वैल्यू — Pgs. 83
35. डबल गेम — Pgs. 85
36. शायर — Pgs. 88
37. छलिया — Pgs. 90
38. संवेदनाओं की टोकरी — Pgs. 92
39. वह पगला — Pgs. 94
40. सेल्फ-मेड — Pgs. 95
41. जहर — Pgs. 97
42. मनमंथन — Pgs. 98
43. नई पड़ोसन — Pgs. 100
44. वान्या — Pgs. 102
45. हड़बड़िया — Pgs. 104
46. राजहंस, ओ राजहंस! — Pgs. 106
47. देवत्व की प्राप्ति — Pgs. 108
48. वेलेंटाइन डे — Pgs. 110
49. राजलक्ष्मी — Pgs. 112
50. पर डॉक्टर! — Pgs. 113
51. खुशी — Pgs. 115
52. अब पछतावत होत का? — Pgs. 116
53. सॉरी मम्मा! — Pgs. 118
54. जहरीले — Pgs. 120
55. दूध पियाई — Pgs. 121
56. हम औरतें — Pgs. 122
57. अजनबी — Pgs. 123
58. आप कहाँ हैं? — Pgs. 124
59. मोबाइल बाबा — Pgs. 125
60. बता जीव बता? — Pgs. 127
61. वे मासूम — Pgs. 129
62. राम-राम सा!! — Pgs. 131
63. निर्दयी माँ — Pgs. 133
64. बेताल का ताल — Pgs. 135
65. निगाहें — Pgs. 138
66. पत्थर के सनम — Pgs. 140
67. कहानी की कहानी — Pgs. 141
68. जानती हो माँ! — Pgs. 144
69. उर्मिला क्यौं मौन हो? — Pgs. 145
70. मदर्स डे — Pgs. 146
71. रोबोट चाइल्ड — Pgs. 148
72. अजब-गजब कहानी — Pgs. 150
73. कैसी ये बेचैनियाँ? — Pgs. 152
74. वक्त-वक्त की बातें — Pgs. 154
75. पुर्चियाँ — Pgs. 156
76. पर, वह चुप थी — Pgs. 158
77. समोसे की अिभलाषा — Pgs. 160
78. 24 घंटे नॉन स्टॉप — Pgs. 162
79. खनक — Pgs. 165
80. अमृतपान — Pgs. 167
81. हर बार फौजी ही क्यों? — Pgs. 169
82. मिठास या खटास? — Pgs. 170
83. कविता की माँ — Pgs. 171
84. लकीरें — Pgs. 172
85. तोड़ियाँ — Pgs. 174
86. शुक्रिया — Pgs. 176
प्रसिद्ध कपड़ा व्यवसायी हनुमान प्रसाद तुलस्यान की पौत्री तथा उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध लॉटरी व्यवसायी (लॉटरी सम्राट्) श्री बद्रीप्रसाद गोयल की पुत्रवधु।
कृतित्व : कविता, कहानियाँ, रिपोर्ताज, यात्रा-वृत्तांत तथा लेख दैनिक जागरण, अमर उजाला, आई नेक्ट, सरिता, रूपायन, हैलो कानपुर जैसे प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं, अन्य साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित तथा रेडियो से प्रसारित।
सन् 1998 से आर्किटेक्चर फर्म कर्वे गुंजाल ऐंड एसोसिएटेड के साथ एक इंटीरियर डिजायनर की हैसियत से कार्यरत। सन् 1997 में पति राकेश गोयल के साथ मिलकर कादंबरी ज्वैलर्स की स्थापना की। सेवा संस्थान काकादेव कानपुर की फाउंडर ट्रस्टी, डायरेक्टर और सिलाई केंद्र संचालिका तथा लॉयन क्लब आदर्श की मेंबर, अर्पिता महिला मंडल में कार्यकारिणी सदस्य। दुर्गाप्रसाद दुबे पुरस्कार कमेटी की सदस्या, लक्ष्मी देवी ललित कला अकादमी की संस्थापक सदस्या। उ.प्र. के राज्यपाल द्वारा पुरस्कृत; साहित्य वाचस्पति सम्मान तथा दैनिक जागरण, कानपुर में लोकपाल की पदवी से सम्मानित।
संप्रति : पति राकेश गोयल के साथ ज्वैलरी व्यापार में संलग्न।