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Tyag, Tapasya Aur Balidan Ki Parampara Ke Vahak Shri Guru Tegabahadur   

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Author Dr. Kuldip Chand Agnihotri
Features
  • ISBN : 9789394534438
  • Language : HIndi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • Dr. Kuldip Chand Agnihotri
  • 9789394534438
  • HIndi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2022
  • 208
  • Hard Cover
  • 250 Grams

Description

"सप्तसिंधु क्षेत्र की कुछ घटनाएँ ऐसी हैं, जिन्होंने संपूर्ण भारतवर्ष के इतिहास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इनमें सबसे पहली घटना तो मोहनजोदड़ो, हड़प्पा सभ्यता का उदय था, जिससे कालांतर में सिंधु सरस्वती सभ्यता का विकास हुआ।
दरअसल वर्तमान भारतीय विश्वासों, आस्थाओं एवं पूजा-पद्धति का आधार सिंधु-सरस्वती घाटी में ही मिलता है। कुरुक्षेत्र में हुआ महाभारत का युद्ध इस क्षेत्र की ऐसा घटना है, जिसने पूरे हिंदुस्थान की सेनाओं को सप्तसिंधु के मैदानों में लाकर खड़ा कर दिया था। इन्हीं वैदिक परंपराओं का विकास श्रवण परंपराओं में हुआ, जिनके संश्लेषण की आधार भूमि भी सप्तसिंधु क्षेत्र ही बना। उसके सैकड़ों साल बाद यही सप्तसिंधु का क्षेत्र अरब से उठी सामी चिंतन की आँधी का शिकार हुआ। हमले क्‍योंकि सप्तसिंधु क्षेत्र से ही होते थे, इसलिए इसका सर्वाधिक दंश भी इसे ही झेलना पड़ा । लेकिन इस नई आफत का सामना कैसे किया जाए? यह उस युग की सबसे बड़ी चुनौती थी। इस मरहले पर दशगुरु परंपरा का उदय होना दैवी योजना ही कही जा सकती है।
गुरु नानक देवजी इस परंपरा के संस्थापक थे। दशगुरु परंपरा का मूल्यांकन आध्यात्मिक क्षेत्र में तो हुआ है, लेकिन उसके ऐतिहासिक व सामाजिक क्षेत्र में योगदान को वरीयता नहीं दी गई। यह ऐसा क्षेत्र है, जिसमें कुदाल चलाने की आवश्यकता है। यह पुस्तक दशगुरु परंपरा के इसी क्षेत्र में किए गए योगदान को प्रकाश में लाने का स्तुत्य प्रयास है।"

 

The Author

Dr. Kuldip Chand Agnihotri

डॉ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री गुरुवाणी और मध्यकालीन दशगुरु परंपरा के अध्येता हैं। आजकल दशगुरु परंपरा के संदर्भ में सप्तसिंधु और जंबूद्वीप का इतिहास खँगालने में व्यस्त हैं। वह हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला के कुलपति रह चुके हैं। कुछ समय के लिए हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला में आंबेडकर पीठ में चेयर प्रोफेसर रहे। जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र दिल्ली से भी जुड़े हुए हैं। प्रो. अग्निहोत्री ने अनेक देशों की यात्रा की। जिन दिनों ईरान में अयातुल्लाह खुमैनी ने आर्यमेहर शाह का तख्तापलट किया, उन दिनों वह ईरान में थे। शायद उनकी पुस्तक ईरानी क्रांति तथा उसके बाद हिंदी में लिखी गई अपने प्रकार की पहली किताब है।

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