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क्या आप जानते हैं कि एक समय था, जब भालू बोलते थे, चाँद हँसता था और शिशु मछली के पेट में पाए जाते थे? क्या आपने कभी हजार भुजाओं वाले व्यक्ति को देखा है?
इस संग्रह की कहानियाँ भगवान् विष्णु के दो सबसे प्रसिद्ध अवतारों—राम और कृष्ण—तथा उनके वंश के इर्द-गिर्द घूमती हैं। दोनों के ही विषय में अनगिनत कहानियाँ हैं, लेकिन वर्तमान पीढ़ी के दिल और दिमाग से उनमें से अधिकांश लुप्त होती जा रही हैं।
लोकप्रिय लेखिका सुधा मूर्ति आपको एक मंत्रमुग्ध कर देनेवाली यात्रा पर ले जा रही हैं, और इस दौरान आपको उन दिनों के विषय में बताती हैं, जब राक्षस और देवता मनुष्यों के साथ रहते थे, जानवर बोला करते थे और देवी-देवता सामान्य लोगों को अद्भुत वरदान दिया करते थे।
भारतीय पौराणिक कथाओं की रोचक प्रस्तुति।
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अनुक्रम
परिचय —Pgs. 7
आभार —Pgs. 11
रघुनंदन राम
1. सूर्य वंश —Pgs. 17
2. चींटी की बाँबी में आदमी —Pgs. 23
3. समय की माप —Pgs. 29
4. स्वर्ग से पृथ्वी तक —Pgs. 32
5. उलटा लटका राजा —Pgs. 37
6. एक वचन का वचन —Pgs. 41
7. सोने का पेड़ —Pgs. 54
8. रावण : एक जटिल असुर —Pgs. 59
9. देवता से चतुराई नहीं करनी चाहिए —Pgs. 75
10. हनुमान —Pgs. 82
11. रेत का गोला और पाँच साक्षी —Pgs. 92
12. नाम की शक्ति —Pgs. 95
13. राम का अंत —Pgs. 102
14. समय यात्रा —Pgs. 107
15. विभिन्न देशों में रामायण —Pgs. 110
कृष्णं वंदे जगद्गुरुम्
1. चंद्र वंश —Pgs. 115
2. मणि, जो स्वर्ण उत्पन्न करती थी —Pgs. 117
3. श्रीकृष्ण और उनके शत्रु —Pgs. 125
4. एक दृष्टिहीन दादी के आभास —Pgs. 137
5. स्वप्न में आता दूल्हा —Pgs. 141
6. श्रीकृष्ण की पत्नियाँ —Pgs. 149
7. साढ़े तीन हीरे —Pgs. 151
8. दैत्य, जिसने थूका था —Pgs. 163
9. ऋषि, जिन्हें जल चाहिए था —Pgs. 168
10. श्रीकृष्ण का महाप्रयाण —Pgs. 173
सुधा मूर्ति का जन्म सन् 1950 में उत्तरी कर्नाटक के शिग्गाँव में हुआ। उन्होंने कंप्यूटर साइंस में एम.टेक. किया और वर्तमान में इन्फोसिस फाउंडेशन की अध्यक्षा हैं। बहुमुखी प्रतिभा की धनी सुधा मूर्ति ने अंग्रेजी एवं कन्नड़ भाषा में उपन्यास, तकनीकी पुस्तकें, यात्रा-वृत्तांत, लघुकथाओं के अनेक संग्रह, अकाल्पनिक लेख एवं बच्चों हेतु चार पुस्तकें लिखीं। सुधा मूर्ति को साहित्य का ‘आर.के. नारायणन पुरस्कार’ और वर्ष 2006 में ‘पद्मश्री’ तथा कन्नड़ साहित्य में उत्कृष्ट योगदान हेतु वर्ष 2011 में कर्नाटक सरकार द्वारा ‘अट्टीमाबे पुरस्कार’ प्राप्त हुआ। अब तक भारतीय व विश्व की अनेक भाषाओं में लगभग दो सौ पुस्तकें प्रकाशित होकर बहुचर्चित-बहुप्रशंसित।