₹400
कल शाम मैं एक रेस्त्राँ में बैठा था। बगलवाली मेज पर एक दंपती था। मैं हैरान था कि दोनों करीब आधा घंटा वहाँ रहे, लेकिन आपस में एक शब्द भी बात नहीं की। दोनों लगातार अपने-अपने मोबाइल फोन पर लगे रहे। आखिर तकनीक ने हमें एक-दूसरे के करीब किया है या दूर। दूसरी मेज पर भी वही हाल था। पुरुष अपने साथ आईपैड जैसी कोई चीज लिये हुए था और उसमें फिल्म देख रहा था। महिला लगातार फोन पर लगी थी।
मुझे लगा आधुनिकता अपने साथ अकेलापन लेकर आगे बढ़ रही है। सड़कें चमचमा रही हैं, शहर जगमगा रहा है, पर आदमी तन्हा है।
पता नहीं, लोग इस सच को समझते हैं या नहीं, पर अकेलापन एक सजा है। रेस्त्राँ में लोग एकांत की तलाश में आते हैं और अकेले होकर चले जाते हैं।
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अनुक्रम
उम्मीद —Pgs. 5
1. उम्मीद के फूल —Pgs. 11
2. अंतिम दर्शन —Pgs. 13
3. मिसेज सनेम —Pgs. 15
4. लक्ष्मीजी आई हैं —Pgs. 18
5. बहन की दुआएँ —Pgs. 21
6. जीत की हार —Pgs. 24
7. सबसे बड़ी सज़ा —Pgs. 28
8. मुझे बिटिया ही कीजो —Pgs. 32
9. मुझे औरत का दिल चाहिए —Pgs. 35
10. काटो मत, खोलो —Pgs. 38
11. चार लोग —Pgs. 41
12. तुम छोड़ दो —Pgs. 44
13. अविश्वास का रिश्ता —Pgs. 47
14. रेत पर नाम —Pgs. 50
15. उम्मीद का पत्थर —Pgs. 53
16. समझदारी का टच —Pgs. 56
17. लैंप पोस्ट के नीचे सुई —Pgs. 59
18. जा जी ले, सिमरन —Pgs. 62
19. नदी और नमक —Pgs. 65
20. हँसता हुआ जो जाएगा —Pgs. 69
21. नाचो सारे, जी फाड़ के —Pgs. 72
22. मुति की पहचान —Pgs. 76
23. ऐसी यों हैं महिलाएँ —Pgs. 79
24. मशीन और मनुष्य —Pgs. 82
25. एक अकेला शिखर पर —Pgs. 85
26. कंधे पर संसार —Pgs. 89
27. पहले तुम —Pgs. 92
28. चार शादियाँ —Pgs. 96
29. वरदान, जो बन गया शाप —Pgs. 100
30. मुझे माँ बनना है —Pgs. 103
31. एक और विजय —Pgs. 106
32. पानी और दूध —Pgs. 110
33. उम्मीद और ज़िंदगी —Pgs. 113
34. अभी कुछ बाकी है —Pgs. 118
35. फँसना जरूरी है —Pgs. 121
36. पापा सुनो —Pgs. 124
37. असली बिल्ली —Pgs. 127
38. गुड वॉय —Pgs. 130
39. रणछोड़ बनो —Pgs. 133
40. गिद्ध का लंच —Pgs. 140
41. मेरे घर आना माँ —Pgs. 143
42. जल्दी का काम —Pgs. 147
43. दो अकेले शहर में —Pgs. 150
44. जेट लैग —Pgs. 152
45. आई लव यू —Pgs. 156
46. मार्क जरूर आएगा —Pgs. 159
47. कमाई की कटाई —Pgs. 162
48. सबसे बड़ा शोध —Pgs. 165
49. पहले उसके दस्तखत लाओ —Pgs. 170
50. तुम पार्क में खेलो —Pgs. 174
51. खुशी का कारोबार —Pgs. 177
52. हँसिए मत, कोसिए मत —Pgs. 180
53. गमले का पौधा —Pgs. 184
54. मिश्रा आंटी —Pgs. 187
55. चुटकी बजा के —Pgs. 190
56. कर्ज, फर्ज और मर्ज —Pgs. 193
57. दिल है कि मानता नहीं —Pgs. 196
58. जली हुई रोटियाँ —Pgs. 199
59. मेरी दीदी उफक —Pgs. 202
60. गुड न्यूज है —Pgs. 205
61. माँ! तुझे सलाम —Pgs. 209
62. कहानी गीता की —Pgs. 212
63. दो दिल मिले —Pgs. 216
64. बड़ा घर चाहिए —Pgs. 219
65. नया घर मतलब नया संसार —Pgs. 223
66. मिलना धूमकेतु से —Pgs. 226
67. अधूरे सपने —Pgs. 230
आजतक में बतौर संपादक कार्यरत संजय सिन्हा ने जनसत्ता से पत्रकारिता की शुरुआत की। दस वर्षों तक कलम-स्याही की पत्रकारिता से जुड़े रहने के बाद इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। कारगिल युद्ध में सैनिकों के साथ तोपों की धमक के बीच कैमरा उठाए हुए उन्हीं के साथ कदमताल। बिल क्लिंटन के पीछे-पीछे भारत और बँगलादेश की यात्रा। उड़ीसा में आए चक्रवाती तूफान में हजारों शवों के बीच जिंदगी ढूँढ़ने की कोशिश। सफर का सिलसिला कभी यूरोप के रंगों में रँगा तो कभी एशियाई देशों के। सबसे आहत करनेवाला सफर रहा गुजरात का, जहाँ धरती के कंपन ने जिंदगी की परिभाषा ही बदल दी। सफर था तो बतौर रिपोर्टर, लेकिन वापसी हुई एक खालीपन, एक उदासी और एक इंतजार के साथ। यह इंतजार बाद में एक उपन्यास के रूप में सामने आया—‘6.9 रिक्टर स्केल’। सन् 2001 में अमेरिका प्रवास।
11 सितंबर, 2001 को न्यूयॉर्क में ट्विन टावर को ध्वस्त होते और 10 हजार जिंदगियों को शव में बदलते देखने का दुर्भाग्य। टेक्सास के आसमान से कोलंबिया स्पेस शटल को मलबा बनते देखना भी इन्हीं बदनसीब आँखों के हिस्से आया।