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Author Mridula Sinha
Features
  • ISBN : 9789383111367
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • Mridula Sinha
  • 9789383111367
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2013
  • 168
  • Hard Cover
  • 345 Grams

Description

प्रकृति, पशु-पक्षी, रीति-रिवाज, जीवन-मूल्य, पर्व-त्योहार और नाते-रिश्तों से हमारा विविध रूप, रंग-रस व गंध का सरोकार रहता है। हमारी प्रकृति व संस्कृति परस्पर पूरक हैं। परस्पर निर्भरता ही इनका जीवन-सूत्र है। हम उनके साथ रिश्तों के सरोकार से विलग नहीं रह सकते। लेकिन बदलते दौर में यह ऊष्मा लगातार कम हो रही है। इन सरोकारों में आई कमी कहीं-न-कहीं हमारे मन को कचोटती है। प्रकृति व संस्कृति के संरक्षण के लिए इन सरोकारों को बचाए रखना बहुत जरूरी है।
यह सच है कि प्रकृति के विभिन्न अवयवों, रूपों और मनोभावों के साथ समायोजन ही मानवीय जीवन है। इस समायोजन में जितनी कमी आएगी, हम इनसे जितना दूर जाएँगे, हमारा जीवन दूभर होता जाएगा। इन दिनों जिसे देखो, बेचैन है। हम अपनी बेचैनी के कारण ढूँढ़ रहे हैं, पर वे मिल नहीं रहे। धन के प्रभाव में कहाँ मिलेगा दुःख और उदासी का कारण। स्थिति हो गई है ‘कस्तूरी कुंडली बसै, मृग ढूँढ़े वन माहिं।’
पुरानी पीढ़ी सब प्रकार के अभावों में भी आनंदित रहती थी। धन का अभाव था; किंतु पशु-पक्षी, नदी-पहाड़, खेत-खलिहान, रिश्ते-नातों का नहीं। प्रकृति के साथ अपनेपन का संबंध अभाव में भी आनंदित करता था। इस पुस्तक में आनंद के इन्हीं सूत्रों को ढूँढ़ने का प्रयास किया गया है।

The Author

Mridula Sinha

मृदुला सिन्हा 
27 नवंबर, 1942 (विवाह पंचमी), छपरा गाँव (बिहार) के एक मध्यम परिवार में जन्म। गाँव के प्रथम शिक्षित पिता की अंतिम संतान। बड़ों की गोद और कंधों से उतरकर पिताजी के टमटम, रिक्शा पर सवारी, आठ वर्ष की उम्र में छात्रावासीय विद्यालय में प्रवेश। 16 वर्ष की आयु में ससुराल पहुँचकर बैलगाड़ी से यात्रा, पति के मंत्री बनने पर 1971 में पहली बार हवाई जहाज की सवारी। 1964 से लेखन प्रारंभ। 1956-57 से प्रारंभ हुई लेखनी की यात्रा कभी रुकती, कभी थमती रही। 1977 में पहली कहानी कादंबिनी' पत्रिका में छपी। तब से लेखनी भी सक्रिय हो गई। विभिन्न विधाओं में लिखती रहीं। गाँव-गरीब की कहानियाँ हैं तो राजघरानों की भी। रधिया की कहानी है तो रजिया और मैरी की भी। लेखनी ने सीता, सावित्री, मंदोदरी के जीवन को खंगाला है, उनमें से आधुनिक बेटियों के लिए जीवन-संबल हूँढ़ा है तो जल, थल और नभ पर पाँव रख रही आज की ओजस्विनियों की गाथाएँ भी हैं।
लोकसंस्कारों और लोकसाहित्य में स्त्री की शक्ति-सामर्थ्य ढूँढ़ती लेखनी उनमें भारतीय संस्कृति के अथाह सूत्र पाकर धन्य-धन्य हुई है। लेखिका अपनी जीवन-यात्रा पगडंडी से प्रारंभ करके आज गोवा के राजभवन में पहुँची हैं।

 

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