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“नाम जानकर क्या करेंगी, मैं बताए देती हूँ, ये शादी नहीं हो सकती।” वह बोली और उसने फोन पटक दिया। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि हो क्या रहा है! दिल घबराने लगा, मन आशंकित हो गया। क्या होगा मेरा? अगर विपिनजी ने भी धोखा दे दिया तो! हे भगवान्, क्या करूँ मैं अब? मेरी बिटिया सुहानी इस दुनिया की झंझटों से अनजान बेखबर सोई हुई थी। मैंने विपिनजी को भी फोन नहीं किया, सोचेंगे कि मैं शक कर रही हूँ। सारी रात यूँ ही बेचैन गुजरी। सुबह पापा को सब बताया तो वे बोले, “बेटा, विपिनजी केंद्रीय स्तर के मंत्री हैं। उनके हजारों मित्र हैं तो कई दुश्मन भी होंगे। वही ये चालें चल रहे हैं। राजनीति के दाँव-पेंच तुम नहीं जानती, कुछ विरोधी पार्टीवाले ये ही चाहते हैं कि विपिनजी किसी-न-किसी चक्कर में फँसे रहें, बदनाम हो जाएँ। ये चालें हैं, इन्हें समझो, अब तुम भी इस दलदल में पाँव रख रही हो, बहुत सँभलकर होशियारी से चलना होगा, पग-पग पर बाधाएँ आएँगी।”
—इसी संग्रह से स्त्रा् के मर्म और संवेदना की परत-दर-परत खोलतीं, नारी के संत्रास-दंश को दूर कर एक सकारात्मक चेतना जगाने की सशक्त अभिव्यक्ति हैं ये कहानियाँ। आज की भागमभाग की जिंदगी में तथा अंग्रेजी के जबरदस्त माहौल में सरलतम हिंदी में लिखी ये कहानियाँ पाठक को अपने से, किसी के दर्द से, किसी की यातना से मुलाकात का अवसर देंगी।
श्रीमती रश्मि गौड़ का जन्म उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में हुआ। सन् 1959 में पिता श्री आनंद प्रकाश जैन ‘पराग’ के प्रधान संपादक होकर मुंबई चले गए, अत: इनकी शिक्षा-दीक्षा मुंबई में साहित्यिक परिवेश में हुई। विवाहोपरांत पुन: उत्तर प्रदेश में आकर बस गईं। पति श्री एस.पी. गौड़ उ.प्र. संवर्ग के आई.ए.एस. अधिकारी रहे, अत: सेवाकाल में काफी घूमना हुआ; खट्टे-मीठे अनुभवों के साथ जिंदगी चलती रही। कालांतर में अपने दोनों पुत्रों के बड़े होने पर अपने अंतर्मन की कोमल भावनाओं को कागज पर उतारा। सन् 1993 में पहली कहानी ‘गठरी’ ‘सरिता’ में छपी। उसके बाद ‘साहित्य अमृत’, ‘मुक्ता’ जैसी राष्ट्रीय पत्रिकाओं में अनेक कहानियाँ प्रकाशित हुईं। कुछ बाल कहानियाँ दिल्ली के पाठ्यक्रम में ‘रैपिड रीडर’ में संकलित हैं। ‘आधी दुनिया’ कहानी संग्रह सन् 2006 में ‘विद्या विहार’ से प्रकाशित हुआ, जो खूब सराहा गया।