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भारत की सांस्कृतिक परंपराओं की विरासत यहाँ के सभी प्रदेशों की आंचलिक लोककथाओं में सुरक्षित हैं। ये कथाएँ परंपराओं के मूर्त, अमूर्त अवशेष के रूप में संस्कृति की शिक्षा देती रही हैं। ये धार्मिक समन्वय और अखंड भारत के स्वरूप का अध्ययन भी प्रस्तुत करती हैं।
इस पुस्तक में हिंदी की पोषक उत्तर प्रदेश की जनपदीय लोकभाषाओं की कथाएँ हैं। उत्तर प्रदेश की मुख्य लोकभाषाएँ या हिंदी की बोलियाँ हैं— अवधी, आदिवासी, कौरवी, ब्रज, बुंदेली, भोजपुरी आदि। वही कथाएँ प्रायः सभी लोकभाषाओं में पाठ भेद के साथ मिलती हैं। उत्तर प्रदेश की सभी बोलियों, उपभाषाओं का लोककथा साहित्य रोचक, प्रेरक और समृद्ध है। यह दावा नहीं किया जा सकता कि कौन सी कथा किस बोली-क्षेत्र की है। सब में एक ही मूल भाव, लोकमंगल उपस्थित है। कथा के अंत में कहा जाता है कि ‘सबके अच्छे दिन बहुरे...’अर्थात् किसी के साथ बुरा न हो।
संकलन में जो लोककथाएँ हैं, उनमें धार्मिक-पौराणिक कथाएँ, हास्य कथाएँ, नीति संबंधी कथाएँ, प्रकृति से जुड़ी कथाएँ तो हैं ही, व्रत-पर्व, त्योहारों से जुड़ी ऐसी कथाएँ भी हैं, जिनमें देवी-देवताओं के कथानक, उनकी महिमा और कृपा, व्रत के फल, विधि-विधान तथा व्रत-पर्वों के महत्त्व का वर्णन है।
उत्तर प्रदेश की लोक संस्कृति, परंपराओं
और मान्यताओं का दिग्दर्शन करवाती पठनीय लोककथाओं का संकलन।
कृतित्व : 105 प्रकाशित एवं 18 प्रकाशनार्थ। 9 उपन्यास, 10 कहानी-संग्रह, 10 कविता-संग्रह, 25 लोक साहित्य, 6 नाटक, 8 निबंध-संग्रह, 20 नवसाक्षर एवं बाल साहित्य, 17 संपादित। अन्य अनेक पुस्तकों और पत्रिकाओं का संपादन। आकाशवाणी व दूरदर्शन के विभिन्न केंद्रों से निरंतर प्रसारण। देश-विदेश की संस्थाओं, विश्वविद्यालयों से संबद्ध। अनेक विश्वविद्यालयों से इनके कृतित्व पर शोध कार्य। इनकी अनेक रचनाओं का भारतीय व विदेशी भाषाओं में अनुवाद।
साहित्यिक आयोजनों में देश-विदेश में सक्रिय भागीदारी।
सम्मान : देश-विदेश की 90 संस्थाओं द्वारा सम्मान एवं पुरस्कार।
उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ में संयुक्त निदेशक पद से सेवानिवृत्त।
संपर्क : ‘श्रीवत्स’, 45 गोखले विहार मार्ग, लखनऊ।
दूरभाष : 0522-2206454, 9335904929, 9451329402
इ-मेल : 45srivatsa@gmail.com
वेब : www.drvidyavindusingh.in