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‘‘...अनूठे शोधकर्ता और गांधी के सच्चे उत्तराधिकारी धर्मपाल की खोजों ने बखूबी दरशाया है कि किस तरह घोर पराधीनता के युग में तमाम जकड़बंदी और शरण के बावजूद हमारा समाज निःसत्त्व नहीं हुआ था। उसकी शैक्षिक और अन्न-जल संबंधी स्वावलंबी व्यवस्था भी जैसे-तैसे कायम रही आई थी। हाल के बरसों में अनुपम मिश्र और राजेंद्र सिंह सरीखे कर्मज्ञों ने भी इस खोज को आगे बढ़ाया है। सच्चा आत्मविश्वास पाने के लिए जाहिर है, हमें इस धारा को अपनाते हुए अपने कर्म और विचार की सही दिशा पकड़नी होगी।...’’
‘‘...सवाल सिर्फ गांधी या श्री अरविंद के प्रति हमारे तथाकथित बौद्धिकों की उदासीनता का नहीं है। सवाल स्वयं इस ‘बुद्धि’ की स्वाधीनता और प्रामाणिकता का है। सवाल मानवता के भविष्य का है, जो धर्म-चेतना के बिना नहीं रह सकती, किंतु धर्मोन्माद से तथा उतनी ही मूल्यमूढ़ और सर्वग्रासी राजनीति से भी उबरना चाहती है।...’’
‘‘...मुक्तिबोध को जो ‘उदासी से पुती गायें’ दिखाई दी थीं, क्या उनका सीधा संबंध निराला की इस कविता के ‘मूक भाषा पशु सदृश’ दीन-हीन कंकालों से ही नहीं है।...’’
‘‘...हर वादी का यह स्वभाव है कि वे दूसरे को भी वादी के रूप में ही देख पाता है। वह नहीं सोचता कि वादी के ऊपर एक संवादी भी होता है। मैं वस्तुतः परंपरा-संवादी ही नहीं, नवनवोत्तरवादी-संवादी भी हूँ। परंपरा मुझे पीछे नहीं ले जाती, निरंतर आगे की ओर ठेलती है।...’’
जन्म : 1937 अल्मोड़ा (उत्तराखंड)।
शिक्षा : बी.एस-सी., अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. तथा पी-एच.डी.।
रचना-संसार : ‘रचना के बदले’, ‘शैतान के बहाने’, ‘आड़ू का पेड़’, ‘पढ़ते-पढ़ते’, ‘स्वधर्म और कालगति’ (निबंध-संग्रह); ‘कछुए की पीठ पर’, ‘हरिश्चंद्र आओ’, ‘नदी भागती आई’, ‘प्यारे मुचकुंद को’, ‘देखते हैं शब्द भी अपना समय’, (काव्य-संकलन); तीन बाल कविता-संग्रह तथा दो बाल-नाटक भी; ‘गोबरगणेश’, ‘किस्सा गुलाम’, ‘पूर्वापर’, आखिरी दिन’, ‘पुनर्वास’, ‘आप कहीं नहीं रहते विभूति बाबू’, ‘असबाब-ए-वीरानी’ (उपन्यास); ‘मुहल्ले का रावण’, ‘मानपत्र’, ‘थिएटर’, ‘प्रतिनिधि कहानियाँ’ (कहानी-संग्रह) के साथ-साथ एक यात्रा-संस्मरण, सात समालोचना पुस्तकें एवं काव्यानुवादों की चार पुस्तिकाएँ ‘तनाव’ पुस्तकमाला में; ‘राशोमन’ नाटक का अनुवाद ‘मटियाबुर्ज’ नाम से; प्रसाद रचना-संचयन तथा अज्ञेय काव्य-स्तवक, निराला-संचयन (संपादित)।
पुरस्कार-सम्मान : कई कृतियाँ पुरस्कृत; उपन्यास ‘किस्सा गुलाम’ नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा आठ भारतीय भाषाओं में अनूदित। ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’, ‘शिखर-सम्मान’, ‘व्यास-सम्मान’ तथा भारत सरकार द्वारा ‘पद्मश्री’ से अलंकृत।