₹800
पिछले कुछ वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था का संरचनात्मक स्वरूप बहुत तेजी से बदला। फिर चाहे नोटबंदी जैसा कठोर फैसला हो या फिर जी.एस.टी. जैसे चिरप्रतीक्षित बदलाव को आखिरकार लागू करने में सफलता, कई मायनों में भारत का अर्थतंत्र ऐसे अनेक निर्णयों, नीतियों और प्रणालियों के क्रियान्वयन से प्रभावित हुआ है।
वर्षों से गरीबी और आर्थिक पिछड़ेपन की समस्याओं से जूझ रही भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व की सबसे तेज गति से विकास कर रही अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित करना वाकई यह दर्शाता है कि किस तेजी से भारत में सर्वांगीण विकास करने की दिशा में भरपूर कोशिशें की गईं।
वैश्वीकरण के इस युग में किसी भी देश की अर्थव्यवस्था अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रहे नीतिगत, भू-राजनैतिक तथा आर्थिक बदलावों से भी प्रभावित होती है। जहाँ एक ओर वैश्विक आर्थिक विकास दर में वृद्धि से भारतीय अर्थव्यवस्था लाभान्वित हुई, वहीं दूसरी ओर ब्रेक्सिट और अमेरिकी संरक्षणवाद जैसी नीतियों ने कई चुनौतियाँ भी पेश की हैं।
देश-विदेश में हो रहे परिवर्तनों के सामान्य जनजीवन से लेकर व्यापक अर्थतंत्र पर पड़ रहे प्रभावों का विश्लेषण करती तथा सुनहरी, सशक्त, समृद्ध, समुन्नत भारतीय अर्थव्यवस्था के स्वरूपका दिग्दर्शन कराती एक पठनीय कृति।
___________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________
अनुक्रम | |
एक सराहनीय प्रयास — Pgs. 7 | 77. क्या धूमिल हो जाएगी रिजर्व बैंक की छवि — Pgs. 236 |
कार्य की निरंतरता चिरंतन हो — Pgs. 9 | 78. क्या है ब्रेक्सिट के मायने? — Pgs. 238 |
आमुख — Pgs. 11 | 79. रोजगार केंद्रित होगी नई कपड़ा नीति — Pgs. 240 |
आभार — Pgs. 15 | 80. व्यापक क्षेत्रीय आर्थिक नीति कितनी प्रभावी — Pgs. 242 |
1. तेल की कीमतों में कमी कितनी प्रासंगिक? — Pgs. 25 | 81. आई.एम.एफ. ने कम किए आर्थिक विकास दर के पूर्वानुमान — Pgs. 244 |
2. वाइब्रेंट गुजरात में दिखी जीवंत भारत की तसवीर — Pgs. 28 | 82. निर्यातों में वृद्धि है एक सकारात्मक रुख — Pgs. 247 |
3. विश्व भर में बढ़ रही है आर्थिक असमानता — Pgs. 31 | 83. बदलेगा वस्तु एवं सेवा कर का ढाँचा — Pgs. 249 |
4. ओबामा की यात्रा से भारत-अमेरिकी सबंधों में खुला एक नया अध्याय — Pgs. 34 | 84. मौद्रिक नीति में नहीं दिखा कोई बड़ा बदलाव — Pgs. 252 |
5. अब आर.बी.आई. को भी बजट का इंतजार — Pgs. 37 | 85. महँगाई का बढ़ता स्तर चिंताजनक — Pgs. 254 |
6. ग्रीस समस्या के चलते यूरो संकट अभी भी बरकरार — Pgs. 40 | 86. इंटरनेट से बदलेगी भारत की तसवीर — Pgs. 256 |
7. कृषि विकास को गंभीरता से लेने की आवश्यकता — Pgs. 43 | 87. धीमी पड़ रही है आर्थिक विकास दर — Pgs. 258 |
8. आकस्मिक मुद्रा युद्ध के आसार चिंताजनक — Pgs. 46 | 88. राजन की नई चेतावनी कितनी सार्थक — Pgs. 260 |
9. नीतिगत दरों में कटौती कितनी सार्थक — Pgs. 49 | 89. भारी कर्ज तले दबी है चीन की अर्थव्यवस्था — Pgs. 263 |
10. एफएमसी और सेबी का विलय : कितना सार्थक — Pgs. 52 | 90. ‘एक राष्ट्र-एक बजट’ कितना प्रभावी — Pgs. 265 |
11. भारतीय अर्थव्यवस्था : महँगाई और विकास की दुविधा — Pgs. 55 | 91. बढ़ रही है भारत की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमताएँ — Pgs. 267 |
12. अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्रों के लिए सेबी ने जारी की गाइडलाइन — Pgs. 58 | 92. नीतिगत दरों में कटौती कितनी सार्थक — Pgs. 269 |
13. नई विदेश व्यापार नीति : कितनी प्रभावी? — Pgs. 61 | 93. कितनी विकट है एन.पी.ए. की समस्या — Pgs. 271 |
14. ‘मूडीज’ ने किया भारत की रेटिंग में सुधार — Pgs. 64 | 94. महँगाई में कमी का रुख लाभकारी — Pgs. 273 |
15. भारत में पूर्ण पूँजी खाता कन्वर्टिबिलिटी कितनी सार्थक? — Pgs. 67 | 95. मिस्त्री को टाटा है कंपनी प्रशासन का मसला — Pgs. 275 |
16. बारिश की अनियमितता से आहत होगी विकास दर — Pgs. 70 | 96. पी.एम.आई. सूचकांक ने दिए सकारात्मक संकेत — Pgs. 277 |
17. अब वाकई स्मार्ट बनेगा भारत — Pgs. 73 | 97. बड़े नोट पर बड़ी चोट का पड़ेगा दमदार असर — Pgs. 279 |
18. अच्छे दिनों के लिए करना होगा इंतजार — Pgs. 76 | 98. हेजिंग पर रिजर्व बैंक का स्पष्टीकरण — Pgs. 281 |
19. बढ़ते जा रहे हैं बैंकों में खराब ऋण — Pgs. 79 | 99. समर्थन मूल्य में वृद्धि से बढ़ेगा कृषि उत्पादन — Pgs. 283 |
20. निवेश सेंटीमेंट का कमजोर पड़ना चिंताजनक — Pgs. 82 | 100. क्या कमजोर हो रहे हैं इंफोटेक रोजगार — Pgs. 285 |
21. चीन के साथ आर्थिक कूटनीति कितनी सार्थक — Pgs. 85 | 101. क्या हैं नई मौद्रिक नीति के मायने — Pgs. 287 |
22. मौद्रिक नीति अब मानसून के भरोसे — Pgs. 88 | 102. भारतीय अर्थव्यवस्था में नजर आ रहे हैं रुझान — Pgs. 290 |
23. नई ऋण पुनर्गठन योजना से कम होंगे एन.पी.ए. 91 | 103. फेड रेट्स से प्रभावित होगी वैश्विक अर्थव्यवस्था — Pgs. 292 |
24. निर्यातों का घटता स्तर चिंताजनक — Pgs. 94 | 104. बाह्य वाणिज्यिक उधारी पर पड़ेगा अतिरिक्त भार — Pgs. 295 |
25. फिर से उठ खड़ा हुआ ग्रीस का संकट — Pgs. 97 | 105. खराब ऋणों की समस्या चिंताजनक — Pgs. 297 |
26. रिजर्व बैंक ने जारी की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट — Pgs. 100 | 106. श्रम नीति के लिए उपयोगी है नया रोजगार सर्वेक्षण — Pgs. 300 |
27. गाँवों में कैसे बसता है भारत — Pgs. 103 | 107. बढ़ रही है वैश्विक बेरोजगारी — Pgs. 303 |
28. कैसे हासिल होगी डबल डिजिट विकास दर — Pgs. 106 | 108. क्या हैं अमेरिका संरक्षणवाद के मायने — Pgs. 305 |
29. क्या हैं चाइनीज स्टॉक मार्केट क्रेश के मायने — Pgs. 109 | 109. बदलेगा भारत, बनेगा ‘टेक’ इंडिया — Pgs. 307 |
30. क्या महत्त्वहीन हो जाएगी रिजर्व बैंक की भूमिका — Pgs. 112 | 110. यथावत् रहीं नीतिगत दरें — Pgs. 310 |
31. मौद्रिक नीति में नीतिगत दरें यथावत् — Pgs. 115 | 111. क्या हैं कॉर्पोरेट गवर्नेंस के मायने — Pgs. 312 |
32. खस्ताहाल है चीन की अर्थव्यवस्था — Pgs. 118 | 112. बढ़ती जा रही है महँगाई की समस्या — Pgs. 315 |
33. बैंकिंग क्षेत्र में जुड़ा एक नया अध्याय — Pgs. 121 | 113. जी.डी.पी. पर नहीं दिखा नोटबंदी का असर — Pgs. 317 |
34. पब्लिक सेक्टर बैंकों के लिए नई नीति कितनी प्रभावी — Pgs. 124 | 114. धीमी पड़ रही है ड्रेगन की रफ्तार — Pgs. 319 |
35. कैसे होगा तेजी से आर्थिक विकास — Pgs. 127 | 115. महँगाई दर में वृद्धि चिंताजनक — Pgs. 321 |
36. क्या कम होगा पीली धातु का सुनहरा आकर्षण — Pgs. 130 | 116. क्या हैं फेड दरों में वृद्धि के मायने — Pgs. 323 |
37. आखिर क्यों घट रहे हैं भारतीय निर्यात — Pgs. 133 | 117. बैंक ऋण की दर कमजोर होना चिंताजनक — Pgs. 325 |
38. वैश्विक व्यापार का गिरता स्तर चिंताजनक — Pgs. 135 | 118. मानव विकास सूचकांक ने उठाए कई गंभीर मसले — Pgs. 327 |
39. नीतिगत दरों में कटौती से बढ़ेगा निवेश — Pgs. 138 | 119. रिजर्व बैंक ने विशिष्ट बैंकों के लिए जारी किया चर्चा-पत्र — Pgs. 330 |
40. कितना संतोषप्रद है भारत का भुगतान संतुलन — Pgs. 141 | 120. भारतीय अर्थव्यवस्था में नजर आ रहे हैं अलग रुझान — Pgs. 332 |
41. क्या धीमी पड़ रही है वैश्विक आर्थिक विकास दर — Pgs. 144 | 121. आई.एम.एफ. ने जताई वैश्विक अर्थव्यवस्था के प्रति चिंता — Pgs. 334 |
42. धीमी होती रोजगार विकास दर चिंताजनक — Pgs. 147 | 122. नीति आयोग ने बनाया तीन वर्षीय एक्शन प्लान — Pgs. 336 |
43. भारी ऋणों तले दबी कई नामचीन कंपनियाँ — Pgs. 150 | 123. भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष हैं अनेक चुनौतियाँ — Pgs. 338 |
44. पूँजीगत उत्पादों को मिले प्राथमिकता — Pgs. 153 | 124. बढ़ता चालू खाता घाटा चिंताजनक — Pgs. 340 |
45. कई क्षेत्रों में बढ़ी एफ.डी.आई. लिमिट — Pgs. 156 | 125. क्या हैं एन.पी.ए. समस्या पर अध्यादेश के मायने — Pgs. 342 |
46. नए विधेयक ने सुझाया प्रभावी बैंकरप्ट्सी कोड — Pgs. 159 | 126. क्या नोट बंदी से आहत हुई आर्थिक विकास दर — Pgs. 344 |
47. अर्थव्यवस्था में बढ़ाना होगा निवेश — Pgs. 162 | 127. पर्यावरण समझौते से यू.एस. के पलायन से बदलेंगे कई समीकरण — Pgs. 346 |
48. नए नियमों से मिलेगी शेयर होल्डरों को ज्यादा ताकत — Pgs. 164 | 128. अर्थव्यवस्था में नजर आ रहे हैं मिश्रित प्रभाव — Pgs. 348 |
49. वैश्विक बाजारों में मच सकती है हलचल — Pgs. 167 | 129. क्या हैं एफ.आई.पी.बी. उन्मूलन के मायने — Pgs. 351 |
50. पर्यावरण सुरक्षा पर पेरिस में उठा बड़ा कदम — Pgs. 170 | 130. बढ़ रहा है राज्यों का राजस्व घाटा — Pgs. 353 |
51. आर्थिक विकास दर में गिरावट चिंताजनक — Pgs. 173 | 131. जी.एस.टी. से बदलेगा अप्रत्यक्ष करों का ढाँचा — Pgs. 356 |
52. बढ़ते एन.पी.ए. से त्रस्त हैं भारतीय बैंक — Pgs. 176 | 132. यूरो जापान समझौते से बढ़ेगा वैश्विक व्यापार — Pgs. 359 |
53. क्या धीमी पड़ रही है आर्थिक विकास दर — Pgs. 179 | 133. क्या रिजर्व बैंक करेगा नीतिगत दरों में कटौती — Pgs. 361 |
54. बढ़ रहा है डिजिटल प्रौद्योगिकी का महत्त्व — Pgs. 181 | 134. भारत पर मंडरा रहा है जलवायु परिवर्तन का खतरा — Pgs. 363 |
55. निर्यातों का गिरता स्तर चिंताजनक — Pgs. 184 | 135. नीतिगत दरों में कटौती-कितनी प्रभावी — Pgs. 365 |
56. कैसा रहा दावोस का मौसम — Pgs. 186 | 136. क्या है शेल कंपनियों का मकड़ जाल — Pgs. 367 |
57. क्यों जरूरी है कंपनीज कानून में संशोधन? — Pgs. 188 | 137. आर्थिक विकास दर सुस्त पड़ना चिंताजनक — Pgs. 370 |
58. बढ़ रही है भारत की सकल राष्ट्रीय आय — Pgs. 190 | 138. इंफोसिस से जुड़ा है कंपनी प्रशासन का मसला — Pgs. 372 |
59. कैसे मिले खराब ऋणों से छुटकारा? — Pgs. 192 | 139. नोटबंदी का असर व्यापक — Pgs. 374 |
60. ग्रामीण इलाकों में बढ़ रहा है ऋणों का भार — Pgs. 194 | 140. बढ़ रहा है घरेलू ऋणों का आकार — Pgs. 376 |
61. यूनियन बजट चला गाँवों की ओर — Pgs. 197 | 141. उपभोक्ता के विश्वास में गिरावट चिंताजनक — Pgs. 378 |
62. धीमी पड़ती जा रही है चीन की अर्थव्यस्था — Pgs. 200 | 142. विकास के लिए विनिर्माण और रोजगार, दोनों अहम — Pgs. 380 |
63. नहीं चल सकेगी बिल्डरों की मनमानी — Pgs. 202 | 143. आर्थिक विकास दर का कमजोर पड़ना चिंताजनक — Pgs. 383 |
64. जारी है निर्यात में गिरावट का दौर — Pgs. 204 | 144. मौद्रिक नीति में यथावत् रहीं ब्याज दरें — Pgs. 385 |
65. भारत में बढ़ेगा ई-कॉमर्स का रुतबा — Pgs. 207 | 145. आई.एम.एफ. ने घटाया भारत की आर्थिक विकास दर का पूर्वानुमान — Pgs. 388 |
66. मौद्रिक नीति से बढ़ेगी वित्तीय तरलता — Pgs. 209 | 146. थोक मूल्य सूचकांक में गिरावट एक शुभ संकेत — Pgs. 390 |
67. अच्छे मानसून से भारतीय अर्थव्यवस्था होगी लाभान्वित — Pgs. 211 | 147. सरकारी बैंकों का पुनः पूँजीकरण कितना सार्थक? — Pgs. 392 |
68. वैश्विक विकास दर के पूर्वानुमान में कमी चिंताजनक — Pgs. 213 | 148. भारत में व्यवसाय करना हुआ आसान — Pgs. 394 |
69. ‘गरीबी हटाओ’ एक्शन प्लान कितना प्रभावी — Pgs. 216 | 149. वैश्विक आर्थिक आउटलुक में सुधार कितना सार्थक — Pgs. 396 |
70. लघु और मध्यम उद्योगों से बढ़ रही जी.डी.पी. 219 | 150. अमेरिका-चीन की दोस्ती के मायने — Pgs. 399 |
71. बढ़ती डिफॉल्ट समस्या है चिंताजनक — Pgs. 222 | 151. अंतरराष्ट्रीय रेटिंग में सुधार है एक सकारात्मक संकेत — Pgs. 401 |
72. मात्र एक प्रतिशत लोगों ने भरा टैक्स — Pgs. 224 | 152. आई.बी.सी. कोड संशोधन अध्यादेश 2017 के मायने — Pgs. 403 |
73. चीन की अर्थव्यवस्था पर बढ़ रहा है ऋणों का भार — Pgs. 226 | 153. आर्थिक विकास दर में वृद्धि उत्साहजनक — Pgs. 406 |
74. अमेरिकी केंद्रीय बैंक ने दिए ब्याज दर बढ़ाने के संकेत — Pgs. 228 | 154. निर्यातों के लिए प्रोत्साहन है एक सकारात्मक कदम — Pgs. 408 |
75. आर्थिक विकास दर वृद्धि में कितनी सार्थक — Pgs. 230 | 155. कंपनीज संशोधन विधेयक 2017 कितना सार्थक — Pgs. 410 |
76. रिजर्व बैंक ने जारी की नई ऋण पुनर्गठन नीति — Pgs. 233 | 156. बदल रहा है ग्रामीण भारत का संरचनात्मक ढाँचा — Pgs. 412 |
डॉ. वंदना डांगी एक चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं और लिबोर्ड फाइनेंस लिमिटेड की मैनेजिंग डायरेक्टर हैं। उन्होंने अर्थशास्त्र में बी.ए. (ऑनर्स) तथा प्रबंध-शास्त्र में एम.बी.ए. एवं पी-एच.डी. की डिग्री प्राप्त की है। उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय के जमनालाल बजाज इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज सहित अनेक प्रतिष्ठित प्रबंध संस्थानों में ‘बिजनेस एनवॉयरमेंट’, ‘मैनेजीरियल इकोनॉमिक्स’ और ‘रिसर्च मैथ्डोलॉजी’ आदि विषयों में अध्यापन किया है। वह जमनालाल बजाज इंस्टीट्यूट द्वारा प्रकाशित ‘एस.एस. नादकर्णी रिसर्च मोनोग्राफ’ तथा बी.एस.ई. द्वारा प्रकाशित ‘प्राइमर ऑन कैपीटल मार्केट्स ऐंड मेक्रोइकोनॉमी’ नामक पुस्तकों में लेखिका रही हैं।