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हम साहित्य को अपने जीवन में वह स्थान नहीं देते, जिसका वह हकदार है। हम साहित्य को एक फालतू चीज समझते हैं। किसी व्यक्ति की राय का मखौल उड़ाना हो, तो आप कह दीजिए—यह साहित्यिक ठहरे न? साहित्य को हम फुरसत की, तफरीह की चीज मानते हैं। घर में बेकार बैठे हैं, वक्त काटे न कट रहा है—आइए, किसी साहित्यिक कृति के पन्ने उलट लें। आज जी उदास है, मन भारी है, किसी काम में चित्त नहीं लग पाता— चलिए, बगल के किसी साहित्यिक दोस्त से दो-दो बहकी बातें कर आएँ। वह साहित्यिक यदि कवि हुआ, तो फिर क्या कहना?
—इसी संग्रह से
हिंदी के अमर साहित्यकारों में श्रीरामवृक्ष बेनीपुरी अपने वैशिष्ट्यपूर्ण लेखन के लिए अलग से पहचाने जाते हैं। उनका मानना था कि साहित्य-सृष्टि उनका व्यसन था। जिसे खेल-खेल में प्रारंभ किया, वह उनके जीवन की संचालिका बन गई। वस्तुतः यह व्यसन ही उनका जीवन बन गया। बेनीपुरी का अनुभव-क्षेत्र बहुत ही व्यापक था। उनकी लेखनी समाज के हर वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है और इसीलिए उनकी रचनाओं में मानवीय संवेदना, सरोकार और पहलू विद्यमान रहते हैं।
अपने साहित्यिक जीवन के सिलसिले में उनके मन में जो कुछ प्रश्न और समस्याएँ उठती रहीं, उनके समाधान ढूँढ़ने के प्रयत्नों को उनकी लेखनी ने शब्दबद्ध किया। लोक-हितार्थ उन्हें इस संकलन में संकलित किया गया है।
अपने भीतर झाँकने और जीवन में सहजता अपनाने को प्रेरित करती पठनीय पुस्तक।
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अनुक्रम
अपनी बात —Pgs. 5
वंदे वाणी विनायकौ : साहित्य-विकास की सही दिशा —Pgs. 7
ये निबंध —Pgs. 15
1. वंदे वाणी विनायकौ —Pgs. 19
2. नया देश : नया समाज : नया साहित्य —Pgs. 24
3. साहित्य की उपेक्षा —Pgs. 28
4. पुरानी कथाएँ : नए रूप! —Pgs. 35
5. साहित्यिकता और साधुता —Pgs. 41
6. नव-निर्माण और साहित्य-स्रष्टा —Pgs. 46
7. हिंदी का आधुनिक साहित्य —Pgs. 55
8. हमारा राष्ट्रीय रंगमंच —Pgs. 60
9. नाटक का नया रूप —Pgs. 67
10. हम कहाँ जा रहे हैं? —Pgs. 72
11. राष्ट्र-भाषा बनाम राज्य-भाषा —Pgs. 77
12. कला और साहित्य : तीन मनीषियों की दृष्टि में —Pgs. 82
13. साहित्यिकों की स्मृति-रक्षा! —Pgs. 87
14. कविता का सम्मान —Pgs. 94
15. साहित्य-कला और मध्यम-वर्ग —Pgs. 101
16. बैले या नृत्य-रूपक —Pgs. 107
17. सांस्कृतिक स्वाधीनता की ओर —Pgs. 111
18. नई संस्कृति की ओर —Pgs. 116
19. हिंदी भाषा का स्थिरीकरण —Pgs. 120
20. साहित्य और सत्ता —Pgs. 126
21. साहित्यिको, विद्रोही बनो! —Pgs. 132
22. नेपाल की कवि-वंदना —Pgs. 136
23. सभी भारतीय भाषाओं की जय —Pgs. 142
24. साहित्य और संस्था —Pgs. 148
"जन्म : 23 दिसंबर, 1899 को बेनीपुर, मुजफ्फरपुर (बिहार) में।
शिक्षा : साहित्य सम्मेलन से विशारद।
स्वाधीनता सेनानी के रूप में लगभग नौ साल जेल में रहे। कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के संस्थापकों में से एक। 1957 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से विधायक चुने गए।
संपादित पत्र : तरुण भारत, किसान मित्र, गोलमाल, बालक, युवक, कैदी, लोक-संग्रह, कर्मवीर, योगी, जनता, तूफान, हिमालय, जनवाणी, चुन्नू-मुन्नू तथा नई धारा।
कृतियाँ : चिता के फूल (कहानी संग्रह); लाल तारा, माटी की मूरतें, गेहूँ और गुलाब (शब्दचित्र-संग्रह); पतितों के देश में, कैदी की पत्नी (उपन्यास); सतरंगा इंद्रधनुष (ललित-निबंध); गांधीनामा (स्मृतिचित्र); नया आदमी (कविताएँ); अंबपाली, सीता की माँ, संघमित्रा, अमर ज्योति, तथागत, सिंहल विजय, शकुंतला, रामराज्य, नेत्रदान, गाँव का देवता, नया समाज और विजेता (नाटक); हवा पर, नई नारी, वंदे वाणी विनायकौ, अत्र-तत्र (निबंध); मुझे याद है, जंजीरें और दीवारें, कुछ मैं कुछ वे (आत्मकथात्मक संस्मरण); पैरों में पंख बाँधकर, उड़ते चलो उड़ते चलो (यात्रा साहित्य); शिवाजी, विद्यापति, लंगट सिंह, गुरु गोविंद सिंह, रोजा लग्जेम्बर्ग, जय प्रकाश, कार्ल मार्क्स (जीवनी); लाल चीन, लाल रूस, रूसी क्रांति (राजनीति); इसके अलावा बाल साहित्य की दर्जनों पुस्तकें तथा विद्यापति पदावली और बिहारी सतसई की टीका।
स्मृतिशेष : 7 सितंबर, 1968।