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आज के वैज्ञानिक युग में स्त्री को मुक्त, स्वतंत्र तथा जागरूक होना चाहिए। रूढि़याँ और परंपराएँ उसके विकास के रास्ते में बाधक नहीं होनी चाहिए। परंतु समाज रचना की कुछ असंतुलित धारणाओं के कारण आज भी स्त्री कुछ अवांछनीय बंधनों में बँधी दिखाई देती है। अत: वेदकालीन स्त्रियों के चरित्रों के माध्यम से तत्कालीन समाज-व्यवस्था में स्त्रियों से संबंधित धारणाओं, रूढि़यों तथा परंपराओं का अवलोकन करना कदाचित् उपयोगी सिद्ध होगा। प्रस्तुत पुस्तक में वेदकालीन स्त्रियों के जीवन-चरित्र से स्पष्ट होता है कि वेदकाल में स्त्रियों को विशेष प्रतिष्ठा प्राप्त थी। धर्म, राजनीति, ज्ञान-विज्ञान एवं समाज-व्यवस्था आदि सभी क्षेत्रों में स्त्री को पुरुष के समान महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। कुछ मामलों में तो उसे पुरुष से अधिक प्रतिष्ठा प्राप्त थी। आज के ‘स्त्रीमुक्ति आंदोलन’ एवं स्त्री कल्याणेच्छुक शासन के लिए ये वेदकालीन स्त्री-चरित्र अत्यंत उपयोगी सिद्ध होंगे। वर्तमान हालात में स्त्रियों की समस्याओं के समाधान के लिए स्त्रियों का शिक्षित, संस्कारित तथा जागरूक होना आवश्यक है। आशा है, वेदकालीन स्त्री-चरित्रों के पठन, मनन और चिंतन से स्त्रियों को स्वतंत्रता, सुख-संतोष और सफलता प्राप्त होगी तथा पुरुष वर्ग को सामंजस्य, धैर्य और निर्णय-शक्ति आदि गुण प्राप्त होंगे।
जन्म : 1 जनवरी, 1928 को अमरावती में। शिक्षा : एम.ए., पी-एच.डी.। कृतित्व : नागपुर महाविद्यालय में प्राध्यापक व प्राचार्य तथा विद्यापीठ में छह वर्षों तक कलाशाखा के डीन (अधिष्ठाता) रहे। संस्कृत का प्रसार-प्रचार करते हुए पाठ्य-पुस्तकें तैयार कीं। वेद-उपनिषद् आदि संस्कृत वाड्मय का गहन अध्ययन किया। ‘वेदकालीन स्त्रियाँ’ विषय पर आकाशवाणी से तेईस व्याख्यान तथा दूरदर्शन पर पाँच कडि़याँ प्रसारित। ‘Non-Conventional Sources of energy in the Vedas’ पुस्तक प्रकाशित। मराठी में विपुल साहित्य का सृजन किया। विदर्भ साहित्य संघ (नागपुर), अखिल भारतीय मराठी साहित्य परिषद्, साहित्य संस्कृति मंडल (मुंबई), बालभारती (पुणे) के अध्यक्ष तथा साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली के सदस्य रहे। नागपुर में कविकुलगुरु कालिदास संस्कृत विद्यापीठ की स्थापना करने में अपूर्व योगदान रहा। स्मृतिशेष : 28 मई, 1998।