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पृथ्वीराज चौहान घायल होकर गिर पड़े और अचेत हो गए । फिर घोर युद्ध छिड़ गया । पृथ्वीराज का एक सामंत वहीं लड़ रहा था । नाम था संयम राय । अपने स्वामी की उस दुर्गति को देखकर आपे से बाहर होकर हथियार चलाने लगा । सामना करनेवाला भी बेकाबू हो गया था । युद्ध में संयम राय के पैर कट गए और वह गिर पड़ा । युद्ध कहीं घमासान था, कहीं इखरा-बिखरा । पृथ्वीराज जहाँ घायल और अचेत पड़े थे वहाँ कोई नहीं था । लाशें पड़ी थीं । गिद्धों की बन आई । झपटे लाशों पर । पृथ्वीराज की आँखें फोड़ने और खाने के लिए भी आ गए । संयम राय ने देख लिया । बुरी तरह घायल हो जाने के कारण कराह रहा था । परंतु बलिदानी प्रकृति उभर उठी । संयम राय ने अपनी कमर से छुरा निकाला और कटे पैर की जाँघ से मांस काटकर गिद्धों के सामने फेंक दिया । कराह दब गई, बलिदानी शौर्य ने दबा दी । गिद्धों ने पृथ्वीराज की आँखें छोड़ दीं और संयम राय के मांस के उस कटे टुकड़े पर आ झपटे । संयम राय ने फिर कुछ बोटियाँ गिद्धों को खिलाई और..
-इसी पुस्तक से
प्रस्तुत कहानी संग्रह में लेखक ने रणभूमि में शत्रु सैनिकों के समक्ष भारतीय सैनिकों द्वारा दिखाए गए प्रचंड पराक्रम को कहानी के रूप में प्रस्तुत किया है । साथ ही-' वैल्वर का विद्रोह ', ' इनकरीम ', ' उस प्रेम का पुरस्कार ', ' टूटी सुराही ',' स्वर्ग से चिट्ठी ' तथा ' गवैए की सूबेदारी ', जैसी ऐतिहासिक कहानियाँ भी संगहीत हैं ।
वर्माजी की कहानियों का यह संग्रह पठनीय एवं संग्रहणीय-दोनों है।
मूर्द्धन्य उपन्यासकार श्री वृंदावनलाल वर्मा का जन्म 9 जनवरी, 1889 को मऊरानीपुर ( झाँसी) में एक कुलीन श्रीवास्तव कायस्थ परिवार में हुआ था । इतिहास के प्रति वर्माजी की रुचि बाल्यकाल से ही थी । अत: उन्होंने कानून की उच्च शिक्षा के साथ-साथ इतिहास, राजनीति, दर्शन, मनोविज्ञान, संगीत, मूर्तिकला तथा वास्तुकला का गहन अध्ययन किया ।
ऐतिहासिक उपन्यासों के कारण वर्माजी को सर्वाधिक ख्याति प्राप्त हुई । उन्होंने अपने उपन्यासों में इस तथ्य को झुठला दिया कि ' ऐतिहासिक उपन्यास में या तो इतिहास मर जाता है या उपन्यास ', बल्कि उन्होंने इतिहास और उपन्यास दोनों को एक नई दृष्टि प्रदान की ।
आपकी साहित्य सेवा के लिए भारत सरकार ने आपको ' पद्म भूषण ' की उपाधि से विभूषित किया, आगरा विश्वविद्यालय ने डी.लिट. की मानद् उपाधि प्रदान की । उन्हें ' सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार ' से भी सम्मानित किया गया तथा ' झाँसी की रानी ' पर भारत सरकार ने दो हजार रुपए का पुरस्कार प्रदान किया । इनके अतिरिक्त उनकी विभिन्न कृतियों के लिए विभिन्न संस्थाओं ने भी उन्हें सम्मानित व पुरस्कृत किया ।
वर्माजी के अधिकांश उपन्यासों का प्रमुख प्रांतीय भाषाओं के साथ- साथ अंग्रेजी, रूसी तथा चैक भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है । आपके उपन्यास ' झाँसी की रानी ' तथा ' मृगनयनी ' का फिल्मांकन भी हो चुका है ।