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सैनिक हमारे लोकतंत्र के ऐसे स्तंभ हैं, जो देश के लिए अपने जीवन को स्वेच्छा से बलिदान कर देते हैं। उनका हम पर यह ऋण है कि हम वीर नारियों को सशक्त बनाएँ और उन्हें वह सब दें, जिसकी वे वास्तव में हकदार हैं और भविष्य की चुनौतियों से निपटने में उनकी मदद करें। यों तो बताने के लिए वीर नारियों की ऐसी हजारों कहानियाँ हैं, लेकिन इस पुस्तक में कुछ कहानियों को पाठकों तक पहुँचाने की कोशिश की है। कुछ ऐसी कहानियाँ, जो संघर्ष की आँच में तपकर सफल हुई वीर नारियों को प्रतिबिंबित करती हैं।
प्रत्येक महिला की यात्रा हृदयविदारक, लेकिन अनेक तरीकों से प्रेरक थी। इस पुस्तक को लिखना और सिरे तक पहुँचाना एक लंबी और थका देनेवाली प्रक्रिया रही है, लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में लेखिका नें जीवनभर के लिए कुछ साथी बनाए हैं। कई-कई दिन साथ बिताने के कारण एक-दूसरे से दिल की बातें करने लगे थे, जिसमें हलका-फुलका हँसी-मजाक भी शामिल था तो गंभीर चिंताएँ भी; लेकिन अब हम जानते हैं कि अच्छे-बुरे वक्त में हम साथ हैं। हमारी रक्षा पृष्ठभूमि ने हमें एक-दूसरे से जोडक़र रखा है, यह एक सुंदर सूत्र है, जिसने इस रिश्ते को अत्यंत खास बनाया है। इनमें से कुछ महिलाएँ बहिर्मुखी थीं तो कुछ अंतर्मुखी, कुछ आज भी भय में जी रही हैं, लेकिन फिर भी ये सभी नारियाँ हम सभी के लिए अपने आप में एक प्रेरणा हैं।
अम्बरीन ज़ैदी एक जानी-मानी पत्रकार और स्तंभकार हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स और दैनिक भास्कर जैसे प्रमुख समाचार-पत्रों में भारतीय सशस्त्र बलों के भुला दिए गए नायकों और भोपाल गैस त्रासदी के पीडि़तों से संबंधित अपनी खबरों के लिए उनकी सराहना की गई। उन्होंने कई पुरस्कार भी जीते हैं। उन्होंने नैसकॉम फाउंडेशन और कई अन्य संस्थानों में वरिष्ठ पद पर काम किया है। वह दुनिया की पहली ब्लॉग पत्रिका ‘ब्लॉगर्स पार्क’ में उसकी संस्थापक संपादक रही हैं। वह नियमित रूप से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रकाशनों के लिए लिखती हैं।
एक सैन्य अधिकारी की पत्नी होने के कारण अम्बरीन शहीदों की विधवाओं और अनाथों की भलाई में सक्रिय भूमिका निभाती रही हैं। अपने अनुभव और दक्षता का सदुपयोग करते हुए उन्होंने ‘द चेंजमेकर्स’ नामक संगठन की स्थापना की है, जहाँ वह और उनकी टीम शहीदों की विधवाओं, अनाथों और जरूरतमंद लोगों की पहचान, परामर्श और मार्गदर्शन करती है।