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वर्तमान युवा पीढ़ी पर पाश्चात्य देशों का पड़ रहा प्रभाव यौन संबंधी मूल्यों में गिरावट ला रहा है। श्रेष्ठ भारतीय मूल्यों, जैसे—विषम लिंगी के प्रति सम्मान, जीवन-साथी व वैवाहिक जीवन का सम्मान, विवाह पूर्व एवं विवाहोत्तर यौन संबंधों की अवमानना आदि को पुन: जीवंत करने की आज महती आवश्यकता है। उच्च शिक्षा प्राप्ति की दौड़ एवं व्यवसाय में स्थापित होने की लालसा के परिणामस्वरूप विवाह की आयु में वृद्धि होने लगी है। इन कारणों से किशोर वर्ग विवाह पूर्व यौन संबंधों को सामान्य मानने लगा है। ये संबंध छोटी आयु में गर्भधारण, गर्भपात आदि के साथ-साथ अनेक यौन संक्रमित रोगों (जिनमें एड्स भी शामिल है) के कारण बन रहे हैं। इसलिए भारतीय सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवेश को ध्यान में रखते हुए मान्य यौन व्यवहार की सीमाओं के प्रति सच्ची आस्था उत्पन्न किया जाना आवश्यक हो गया है।
हम अपने किशोरों को विद्यालय के स्तर पर ही ऐसी यौन शिक्षा प्रदान करें, जिससे वे दिग्भ्रमित न हों और भारतीय संस्कारों के अनुरूप यौन-जीवन जिएँ—इसी उद्देश्य से प्रस्तुत पुस्तक का प्रणयन हुआ है। यह कृति किशोरों, युवाओं एवं अन्य सामान्य पाठकों को यौन शिक्षा के संबंध में अनेकानेक महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ देती है।
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अनुक्रम
1. यौन शिक्षा-एक परिचय —Pgs. 13
2. यौन शिक्षा की आवश्यकता —Pgs. 35
3. यौन शिक्षा के प्रति विद्यार्थियों के विचार —Pgs. 87
4. यौन शिक्षा के संदर्भ में विद्यालयी अध्यापक वर्ग के विचार —Pgs. 95
5. यौन शिक्षा अभिभावक वर्ग की नजर में —Pgs. 98
6. यौन शिक्षा कार्यक्रम के प्रारूप की रूपरेखा —Pgs. 106
7. यौन शिक्षा कार्यक्रम के संचालन हेतु संभावित शिक्षण-विधायों एवं गतिविधायों का सुझाव —Pgs. 139
संदर्भ ग्रंथ सूची —Pgs. 162
जन्म : 31 जनवरी, 1969 को।
दिल्ली विश्वविद्यालय से शिक्षा ग्रहण की। राजकीय विद्यालय में टी.जी.टी. के रूप में अध्यापन प्रारंभ किया। सन् 1997 में दिल्ली विश्वविद्यालय के केंद्रीय शिक्षा संस्थान में नियुक्ति।
‘विद्यालयी शिक्षार्थियों के लिए यौन शिक्षा कार्यक्रम के प्रारूप का विकास’ विषय पर पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त।
विशेषज्ञता : सामाजिक विज्ञान शिक्षण, मार्गदर्शन एवं परामर्श, सेक्स एवं सुरक्षा शिक्षा।
शोध के क्षेत्र : मलिन बस्तियों के निवासी बच्चों की शिक्षा समस्याएँ, स्कूली छात्रों के लिए सेक्स शिक्षा, सामाजिक विज्ञान शिक्षा।