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विज्ञान और प्रौद्योगिकी की अधुनातन प्रगति ने जहाँ विकास के नए द्वार खोले हैं, वहीं भारत जैसे विकासशील देश में अनेकानेक रीति-रिवाज, परंपराएँ, अंधविश्वास और पाखंड बड़े पैमाने पर फैले हुए हैं। ऐसे में विज्ञान और प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने के लिए सामाजिक चेतना का विस्तार होना बहुत जरूरी है। यहाँ तक कि भारतीय वाङ्मय और मनीषी परंपरा में भी जो ज्ञान और विज्ञान वर्णित है, चेतनाविहीन समाज उसका भी भलीभाँति लाभ नहीं उठा पा रहा है। जनसंचार माध्यमों के विविध स्वरूपों की संप्रेषणीयता का लाभ सामाजिक चेतना का स्तर बढ़ाने में बखूबी किया जा सकता है। इस दृष्टि से विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार विषय की महत्ता बढ़ जाती है।
जन्म : 21 नवंबर, 1961 को ग्राम पवा, जिला महोबा (उ.प्र.) में।
शिक्षा : प्राणि विज्ञान (पर्यावरण विज्ञान), विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार तथा पत्रकारिता और प्रबंधन में उच्च शिक्षा प्राप्त।
कृतित्व : विज्ञान परिषद् का गठन कर ‘विज्ञानपुरी’ त्रैमासिक पत्रिका निकाली। ‘विज्ञान प्रगति’ मासिक के सहायक संपादक रहे। अनेक विज्ञान लेखों व पुस्तकों का लेखन; पत्र-पत्रिकाओं व पुस्तकों का संपादन; आकाशवाणी और दूरदर्शन पर विज्ञान कार्यक्रमों हेतु आलेख लेखन; ‘कृषि दर्शन’ कार्यक्रम का संयोजन एवं प्रस्तुतीकरण। दक्षिण कोरिया में विज्ञान संचार के विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में योगदान। वाटर स्टोव और नई लालटेन का विकास और भारत में पेटेंट।
इंडियन साइंस राइटर्स एसोसिएशन के मानद अध्यक्ष; इंडियन जर्नल ऑफ साइंस कम्यूनिकेशन के संपादक।
संप्रति : निदेशक (वैज्ञानिक ‘एफ’), विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली।