₹350
समान्य धारणा है कि ‘विलोम शब्दकोश’ केवल उन विद्यार्थियों के काम के होते हैं, जिन्हें भाँति-भाँति की परीक्षाएँ देनी होती हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि हिंदी के लिए या हिंदी में काम करनेवाले प्रायः सभी तरह के लोगों को कभी-न-कभी विलोम शब्दों को जानने-समझने की आवश्यकता होती ही है। इस अर्थ में यह कोश विद्यार्थियों, अध्यापकों, लेखकों, पत्रकारों, बुद्धजीवियों आदि सबका हितसाधक बनेगा, ऐसी उम्मीद की जा सकती है।
इस कोश की एक विशिष्टता यह है कि इसमें संगृहीत सभी शब्द वणोर्ं के सुचिंतित क्रम का ध्यान रखते हुए सँजोए गए हैं। इसके अलावा, विद्यार्थियों में हिंदी-वर्णमाला की सामान्य समझ विकसित करने के उद्देश्य से प्रत्येक वर्ण की मूल विशेषता को भी संक्षिप्त में बताया गया है।
ऐसा भी नहीं है कि यह पुस्तक
सिर्फ ‘विलोम शब्दकोश’ भर ही है, बल्कि परिशिष्ट के रूप में इसकी उपयोगिता को विस्तार देने का प्रयत्न किया गया है। विलोम शब्दों पर आधारित पदबंध इसकी रोचकता और उपयोगिता को और बढ़ाते हैं।
भाषा को सुदृढ और समृद्ध करने के लिए एक आवश्यक पुस्तक।
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अनुक्रम
अपनी बात— Pgs. 5
अ— Pgs. 9
आ— Pgs. 25
इ— Pgs. 28
ई— Pgs. 29
उ— Pgs. 30
ऊ— Pgs. 33
ऋ— Pgs. 34
ए— Pgs. 35
ऐ— Pgs. 36
ओ— Pgs. 37
औ— Pgs. 38
क— Pgs. 39
ख— Pgs. 43
ग— Pgs. 45
घ— Pgs. 48
च— Pgs. 49
छ— Pgs. 51
ज— Pgs. 52
झ— Pgs. 55
ट— Pgs. 56
ठ— Pgs. 57
ढ— Pgs. 58
त— Pgs. 59
थ— Pgs. 61
द— Pgs. 62
ध— Pgs. 65
न— Pgs. 66
प— Pgs. 70
फ— Pgs. 77
ब— Pgs. 78
भ— Pgs. 82
म— Pgs. 84
य— Pgs. 87
र— Pgs. 88
ल— Pgs. 90
व— Pgs. 91
श— Pgs. 95
ष— Pgs. 100
स— Pgs. 101
ह— Pgs. 115
परिशिष्ट विलोम शदों पर आधारित पदबंध— Pgs. 118
पर्यायवाची शद
जन्म : 10 जुलाई, 1970।
शिक्षा : समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर।
प्रतिष्ठि समाजकर्मी संत समीर उन कुछ महत्त्वपूर्ण लोगों में से हैं, जिन्होंने स्वतंत्र भारत में पहली बार बहुराष्ट्रीय उपनिवेश के खिलाफ आवाज उठाते हुए अस्सी के दशक के उत्तरार्ध में स्वदेशी-स्वावलंबन का आंदोलन पुनः शुरू किया। समाजकर्म के ही समानांतर लेखन में भी उनकी सक्रियता बराबर बनी हुई है। संख्यात्मक रूप से कम लिखने के बावजूद आपकी लिखी कुछ पुस्तकें और आलेख खासे चर्चित रहे। हैं। कुछ लेखों की अनुगूँज संसद् और विधानसभाओं तक भी पहुँची है। वैकल्पिक चिकित्सा, समाज-व्यवस्था, भाषा, संस्कृति, अध्यात्म आदि आपकी रुचि के खास विषय रहे हैं।
वैकल्पिक पत्रकारिता की दृष्टि से नब्बे के दशक की प्रतिष्ठित फीचर सर्विस ‘स्वदेशी संवाद सेवा’ के आप संस्थापक संपादक रहे। बहुराष्ट्रीय उपनिवेशवाद, वैश्वीकरण, डब्ल्यूटीओ जैसे मुद्दों पर बहस की शुरुआत करनेवाली इलाहाबाद से प्रकाशित वैचारिक पत्रिका ‘नई आजादी उद्घोष’ के भी संपादक औ सलाहकार संपादक रहे। व्यावसायिक पत्रकारिता के तौर पर कुछ अखबारों व न्यूज एजेंसियों के लिए खबरनवीसी भी की। कुछ समय तक क्रॉनिकल समूह के पाक्षिक ‘प्रथम प्रवक्ता’ से जुडे़ रहने के बाद फिलहाल हिंदुस्तान टाइम्स समूह की मासिक पत्रिका ‘कादंबिनी’ से जुड़े हुए हैं। इसके अलावा रेडियो लेखन और विभिन्न टी.वी. चैनलों के कार्यक्रमों में भी जब-तब आपकी सक्रियता बनी रहती है।
कृतियाँ : ‘सफल लेखन के सूत्र’ (1996), ‘स्वदेशी चिकित्सा’ (2001), ‘सौंदर्य निखार’ (2002), ‘स्वतंत्र भारत की हिंदी पत्रकारिता : इलाहाबाद जिला’ (शोध प्रबंध, 2007) ‘हिंदी की वर्तनी’ (2010), पत्रकारिता के युग निर्माता : प्रभाष जोशी (2010)।
संपर्क : सी-319/एफ-2, शालीमार गार्डन एक्सटेंशन-2, साहिबाबाद, गाजियाबाद-201005 (उ.प्र.)
मोबाइल : 9868202052, 9868902022
इ-मेल: santsameer@gmail.com