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राष्ट्र पुरुष के चारों पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्रतिमूर्ति थे नानाजी। उनके विचारों के माध्यम से उनके बहुआयामी व्यक्तित्व का आईना बने हैं इस खंड में दिए गए साक्षात्कार। साक्षात् नानाजी ही जैसे आज की ज्वलंत समस्याओं पर सटीक टिप्पणियाँ करते हमारे सम्मुख बैठे हैं। केवल जिज्ञासाएँ ही शांत नहीं कर रहे अपितु स्वयं भी किसी खोज में लगे नए-नए प्रश्न पैदा कर रहे हैं और फिर से उनके उत्तरों की खोज-यात्रा में चल पड़े हैं।
नानाजी के साथ विभिन्न माध्यमों में हुए साक्षात्कार उनके व्यक्तित्व को समग्रता से समझने में सहायक सिद्ध होंगे। इन प्रश्नों में विविधता
और नानाजी के उत्तरों में समग्रता का पुट साफ झलकता है।
नानाजी के बहुआयामी व्यक्तित्व को टुकड़ों में बाँटकर नहीं देखा जा सकता। मानव जीवन में जिस समग्रता के वे आग्रही थे, उन्हें भी उसी समग्रता में देखने की आवश्यकता है। आनेवाली पीढ़ी नानाजी के जीवन के हर आयाम, हर पहलू की झलक उनके बेबाक जवाबों में स्पष्ट तौर पर देख सकती है। नानाजी ने अपने सार्वजनिक जीवन के सात से अधिक दशकों में बहुत कुछ बोला और लिखा। राष्ट्रहित में उन्होंने शायद उससे भी ज्यादा अपने सीने में छुपाकर रखा।
भारत के सार्वजनिक जीवन के तपस्वी कर्मयोगी नानाजी देशमुख राजनीति में रहकर भी जल में कमलपत्रवत् पवित्र रहने वाले एक निष्ठावान स्वयंसेवक थे। उनका जीवन समूचे देश की नई पीढ़ी को सतत देशभक्ति, समर्पण व सेवा की प्रेरणा देता रहेगा।
उनका जीवन कृतार्थ जीवन था, इसलिए उनके पार्थिव का दृष्टि से ओझल होना मात्र शोक की बात नहीं है, बल्कि हम सभी के लिए स्वयं कृतसंकल्पित होने की बात है। उनके जीवन का अनुकरण अपने जीवन में करना, यही उनको सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
—मोहनराव भागवत
सरसंघचालक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ