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इसके बाद यह प्रस्ताव पारित किया गया। यहाँ बहुधा यह कहा गया और मैं भी यह कहता रहा हूँ कि हम लोगों ने विगत सत्रह दिनों में जैसा आयोजन देखा है ऐसा अब इस पीढ़ी को तो उनके जीवनकाल में पुन: देखने का अवसर नहीं प्राप्त होगा; पर जिस प्रकार के उत्साह व शक्ति का संचार इस सम्मेलन ने किया है, लोग दूसरे धर्म सम्मेलन के स्वप्न देखने लगे हैं, जो इससे भी अधिक भव्य व लोकप्रिय होगा। मैंने अपनी बुद्घि लगाई है कि अगले धर्म सम्मेलन के लिए उचित स्थान कौन सा हो। जब मैं अपने अत्यंत नम्र जापानी भाइयों को देखता हूँ तो मेरा मन कहता है कि पैसिफिक महासागर की शांति में स्थित टोकियो शहर में अगला धर्म सम्मेलन किया जाए, पर मैं यह सोचता हूँ कि अंग्रेजी शासन के अधीन भारतवर्ष में यह सम्मेलन हो। पहले मैंने बंबई शहर के बारे में सोचा, फिर सोचा कि कलकत्ता अधिक उपयुक्त रहेगा, पर फिर मेरा मन गंगा के तट की प्राचीन नगरी वाराणसी पर जाकर स्थिर हो गया, ताकि भारत के सबसे ओंधक पवित्र स्थल पर ही हम मिलें। अब यह भव्य सम्मेलन कब होगा? हम आज यह निश्चय कर विदा ले रहे हैं कि बीसवीं सदी में अगला भव्य सम्मेलन वाराणसी में होगा तथा इसकी भी अपयक्षता जॉन हेनरी बरोज ही करेंगे।
जन्म : 17 अक्तूबर, 1928 को ग्राम मुकुंदगढ़ (राजस्थान) में।
शिक्षा : प्रारंभिक शिक्षा जहाँ आज पूर्वी बंगाल है, सिराजगंज सिरसाबाड़ी में, स्कॉटिश चर्च कॉलेज, कलकत्ता विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र से स्नातक परीक्षा व गणित ऑनर्स में विश्वविद्यालय में सर्वप्रथम होकर स्वर्ण पदक प्राप्त किया। एम.ए. में प्रसिद्ध वैज्ञानिक श्री सत्येन बोस के पास Pure Mathematics’ के विद्यार्थी रहे।
कृतित्व : पढ़ने की तीव्र इच्छा के बावजूद परिवार के दबाव में सन् 1949 में अमेरिका jute goods के निर्यात में लग गए।
औद्योगिक जगत् में रहकर भी उनका सांस्कृतिक कायोर्ं में सक्रिय योगदान, कलकत्ता के प्रमुख सांस्कृतिक संस्थान ‘भारतीय संस्कृति संसद्’ की 1954 के संस्थापन के संस्थापक सदस्य, एस्ट्रोनॉमी, रामकृष्ण मिशन की गतिविधियों में रुचि, शेंडेक्पू-फालुट (सिक्किम), तिस्ता के किनारे लाओचिंग घाटी, कोल्हाई ग्लेशियर (कश्मीर), पिंडारी ग्लेशियर व हर की धून (उत्तर प्रदेश) ग्लेशियरों की यात्राएँ, रामकृष्ण विवेकानंद साहित्य का मूल बँगला में अध्ययन, ध्रुपद गायक श्री अमीनुद्दीन के छात्र, बोटविनिक चेस एकाडमी (रूसी सांस्कृतिक केंद्र) के अध्यक्ष, जहाँ से भारत के पहले तीन शतरंज ग्रेंड मास्टर निकले।