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भारतीयों के प्रत्येक पर्व और त्योहार की नींव किसी ठोस वैज्ञानिक और तार्किक आधार पर रखी गई है। इन सभी पर्वों और त्योहारों की जड़ में कुछ-न-कुछ वैज्ञानिक रहस्य अवश्य होता है, जो आत्मशुद्धि और स्वास्थ्य की दृष्टि से भी लाभदायक होता है।
मनोविज्ञान के पारखी हमारे ऋषि-मुनियों ने तीर्थों-पर्वों की ऐसी व्यवस्था बनाई कि उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक देश के कोने-कोेने से लोग इन तीर्थ-पर्वों में आकर अपनी संस्कृति का साक्षात्कार करने के साथ-साथ शांति, सद्भाव और बंधुत्व के एक सूत्र में बँध सकें।
कुंभ पर्व मानव जीवन में आलोक और अंतःचेतना का संचार करनेवाला एक ऐसा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक समागम है, जो राष्ट्रचेतना और अखंडता के साथ ही आध्यात्मिक चेतना का आधार स्तंभ भी है। मानव और मानवता के एकात्म हो जाने का महापर्व है महाकुंभ।
विश्व कल्याण और मानव हितार्थ गोष्ठियों और कार्यशाला के रूप में शुरू हुआ यह क्रम वैदिक काल के पूर्व से चला आ रहा है, वह भी बिना किसी आमंत्रण-निमंत्रण या बिना किसी लोभ-लालच के।
महाकुंभ का माहात्म्य और इसके सांस्कृतिक गौरव का बोध करानेवाली पठनीय पुस्तक।
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अनुक्रम
भूमिका —Pgs. 5
अपनी बात —Pgs. 9
1. कुंभ : अनमोल मानवीय विरासत —Pgs. 17
2. माँ गंगा की अनुपम देन ‘कुंभ’ —Pgs. 20
3. गंगा की व्युपत्ति और महत्ता —Pgs. 24
4. इसलिए पड़ा ‘कुंभ’ नाम —Pgs. 28
5. मानवता का कालजयी उपक्रम —Pgs. 31
6. आस्था एवं राष्ट्र-चिंतन का दुर्लभ समागम —Pgs. 34
7. पाठशाला ही नहीं, कार्यशाला भी है —Pgs. 37
8. सदियों पुरानी सांस्कृतिक महायात्रा —Pgs. 39
9. अंतःस्नान का भी महापर्व —Pgs. 41
10. लोक-परलोक को जोड़ता ‘कुंभ’ —Pgs. 44
11. सार्थक जीवन जीने की कला —Pgs. 47
12. हरिद्वार बिना ‘कुंभ’ अधूरा —Pgs. 49
13. कुंभनगरी है हरिद्वार —Pgs. 52
14. इसलिए मनाया जाने लगा अर्धकुंभ —Pgs. 55
15. चार प्रमुख कुंभ स्थल —Pgs. 58
16. विविध स्थानों पर कुंभ —Pgs. 63
17. पुराणों से जुड़े हैं ‘कुंभ’ के सूत्र —Pgs. 66
18. स्वर्णाक्षरों में दर्ज कुंभ 2010 —Pgs. 68
19. महािशवरात्रि स्नान बना इतिहास —Pgs. 73
20. निर्मल अविरल गंगा अगला पड़ाव —Pgs. 77
21. अद्भुत है ‘कुंभ’ आयोजन परंपरा —Pgs. 80
22. अखाड़ों के लिए प्रस्थान से होता है ‘कुंभ’ का आगाज —Pgs. 84
23. अखाड़ों के बिना ‘कुंभ’ अधूरे —Pgs. 86
24. कुल तेरह अखाड़े हैं देश भर में —Pgs. 89
25. धर्मरक्षा का स्विर्णम इतिहास —Pgs. 100
26. हरिद्वार पहली कुंभ नगरी —Pgs. 104
27. तीनों शक्तियों का गढ़ हरिद्वार —Pgs. 107
28. पौराणिक काल की है कुंभनगरी —Pgs. 112
29. हरिद्वार में सिंधु सभ्यता के भी प्रमाण —Pgs. 115
30. कुंभ की व्यापकता —Pgs. 133
31. बड़ा व्यापक है कुंभ नाम —Pgs. 138
32. कुंभ एक विराट् लोक-दर्शन —Pgs. 142
33. मनीिषयों की नजर में कुंभ —Pgs. 153
34. ‘समुद्र-मंथन’ को मान्यता —Pgs. 157
35. लोककथाओं में कुंभ —Pgs. 160
36. ‘कुंभ स्नान’ का विशेष महत्त्व —Pgs. 164
37. विज्ञान संगत है ‘कुंभ’ —Pgs. 169
38. आज और भी प्रासंगिक है ‘कुंभ’ —Pgs. 172
39. सागर मंथन : एक बड़ी सीख —Pgs. 175
40. पर्व-महोत्सव हमारी धरोहर —Pgs. 179
41. आकाश ही ब्रह्मा का कमंडलु है —Pgs. 182
रमेश पोखरियाल ‘निशंक’
जन्म : वर्ष 1959
स्थान : ग्राम पिनानी, जनपद पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)।
साहित्य, संस्कृति और राजनीति में समान रूप से पकड़ रखनेवाले डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ की कहानी, कविता, उपन्यास, पर्यटन, तीर्थाटन, संस्मरण एवं व्यक्तित्व विकास जैसी अनेक विधाओं में अब तक पाँच दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित।
उनके साहित्य का अनुवाद अंग्रेजी, रूसी, फ्रेंच, जर्मन, नेपाली, क्रिओल, स्पेनिश आदि विदेशी भाषाओं सहित तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़, संस्कृत, गुजराती, बांग्ला, मराठी आदि अनेक भारतीय भाषाओं में हुआ है। साथ ही उनका साहित्य देश एवं विदेश के अनेक विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में पढ़ाया जा रहा है। कई विश्वविद्यालयों में उनके साहित्य पर शोध कार्य हुआ तथा हो रहा है।
उत्कृष्ट साहित्य सृजन के लिए देश के चार राष्ट्रपतियों द्वारा राष्ट्रपति भवन में सम्मानित। विश्व के लगभग बीस देशों में भ्रमण कर उत्कृष्ट साहित्य सृजन किया। गंगा, हिमालय और पर्यावरण संरक्षण व संवर्धन हेतु सम्मानित।
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एवं वर्तमान में हरिद्वार लोकसभा क्षेत्र से सांसद तथा लोकसभा की सरकारी आश्वासनों संबंधी समिति के सभापति।