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"वैदिक साहित्य इस बात पर जोर देता है कि विवाह एक संस्कार है, जिसके बिना मनुष्य यज्ञ नहीं कर सकता। यज्ञ के बिना आप परिवार, देवताओं या पूर्वजों का भरण-पोषण नहीं कर सकते। फिर बिना विवाह आप किस काम के हैं?
आपको वर या वधू कैसे मिलती है? क्या आप प्रेम निवेदन करते हैं, उसे लुभाते हैं, अपहरण करते हैं या खरीदते हैं? क्या सहमति मायने रखती है? सभी संभावनाएँ मौजूद हैं, लेकिन सीमाओं के भीतर, जैसा कि हमेशा से व्याप्त ‘रोटी और बेटी’ नियम से संकेत मिलता है, जो केवल उन समुदायों के भीतर विवाह करने की अनुमति देता है, जो कभी समान व्यवसाय किया करते थे।
—इसी पुस्तक से
पौराणिक कथाकार देवदत्त पटनायक द्वारा लिखित ‘विवाह’ पुस्तक में विवाह से संबंधित भारतीय रीति-रिवाजों और मान्यताओं की विविधता तथा सहजता को उजागर करने के लिए वैदिक, पौराणिक, तमिल और संस्कृत साहित्य, क्षेत्रीय, पारंपरिक, लोक और जनजातीय संस्कृति, सुनी-सुनाई और भारतीय वाङ्मय के अनेक ग्रंथों से 3000 साल के इतिहास और 30 लाख वर्ग किलोमीटर में फैले भूगोल की कहानियाँ सम्मिलित हैं।"