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‘ब्रह्म सत्यं’ जगन्मिथ्येत्येवंरूपो विनिश्र्चयः,
सोअयं नित्यानित्यवस्तुविवेकः समुदाहतः।
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काव्यानुवाद—चौपाई छंद में
ब्रह्म सत्य और जगत है मिथ्या।
यहि दृढ़ अटल सत्य है तथ्या॥
अथ निश्चय दृढ़ अविचल एका। नित्यानित्यं वस्तु विवेका॥
आत्म-अनात्म विवेक, नित्य-अनित्य विवेक, सत्य-असत्य विवेक सारा ज्ञान द्वैतात्मक है—विलोम की स्थिति के बिना कैसे दूसरे पक्ष को जाना जा सकता है। संसार, शरीर और अनात्म विषयों में उलझे मन यह भूल जाते हैं कि यथार्थ साधना अंतःकरण में संपन्न होती है। आत्मा नित्य है, अतः इसका कोई मूल तत्त्व या उपादान कारण नहीं है, आत्मा को आत्म-तत्त्व से ही जान पाना संभव है। परम तत्त्व का अनुसंधान, ब्रह्म विषयक ज्ञान, उस असीम को ससीम से जान पाना संभव नहीं। अंतर्वर्ती अंतश्चेतना का जागरण करते हुए, जीव-जगत्-जन्म में अनावश्यक आसक्ति के प्रति सजग रहते हुए, सर्वत्र शुद्ध भगवद्-दृष्टि पाकर सर्वथा जीवन्मुक्त अवस्था से कैवल्य पाना ही सर्वोत्तम सिद्धि है, जिसका ज्ञान और प्राप्ति ही ‘विवेक-चूड़ामणि’ का कथ्य विषय है।
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अनुक्रम
मंगलाचरण —Pgs. 23
ब्रह्मनिष्ठा का महत्त्व —Pgs. 24
ज्ञानोपलब्धि का उपाय —Pgs. 28
अधिकारिनिरुपण —Pgs. 31
साधन-चतुष्टय —Pgs. 33
गुरुपसत्ति और प्रश्नविधि —Pgs. 39
उपदेश-विधि —Pgs. 44
श्री गुरु उवाच —Pgs. 46
प्रश्न निरूपण-शिष्य उवाच —Pgs. 49
शिष्य-प्रशंसा —Pgs. 50
स्व-प्रयत्न की प्रधानता —Pgs. 51
आत्मज्ञान का महत्त्व —Pgs. 54
अपरोक्षानुभव की आवश्यकता —Pgs. 57
प्रश्न-विचार —Pgs. 60
स्थूल शरीर का वर्णन —Pgs. 63
विषय-निंदा —Pgs. 65
देहासक्ति की निंदा —Pgs. 69
दस इंद्रियाँ —Pgs. 73
अंतःकरणचतुष्टय —Pgs. 74
पंचप्राण —Pgs. 76
सूक्ष्म शरीर —Pgs. 77
प्राण के धर्म —Pgs. 81
अहंकार —Pgs. 82
प्रेम की आत्मार्थता —Pgs. 84
माया-निरूपण —Pgs. 85
रजोगुण —Pgs. 87
तमोगुण —Pgs. 89
सत्त्वगुण —Pgs. 92
कारण-शरीर —Pgs. 94
अनात्म-निरूपण —Pgs. 96
आत्म-निरूपण —Pgs. 97
अध्यास (भ्रम मूलक बुद्धि ) —Pgs. 103
आवरण और विक्षेप की शक्ति —Pgs. 107
बंध-निरूपण —Pgs. 109
आत्मानात्म -विवेक —Pgs. 111
अन्नमय कोश —Pgs. 115
प्राणमय कोष —Pgs. 121
मनोमय कोश —Pgs. 123
विज्ञानमय कोष —Pgs. 133
आत्मा की उपाधि से असंगता —Pgs. 136
मुक्ति कैसे होगी? —Pgs. 139
आत्मज्ञान ही मुक्ति का उपाय है —Pgs. 141
आनंदमय कोष —Pgs. 148
आत्म स्वरूप विषयक प्रश्न —Pgs. 152
आत्मस्वरूप-निरूपण —Pgs. 153
ब्रह्म और जगत् की एकता —Pgs. 161
ब्रह्म-निरूपण —Pgs. 168
महावाक्य-विचार —Pgs. 171
ब्रह्म-भावना —Pgs. 177
वासना-त्याग —Pgs. 187
अध्यास-निरास —Pgs. 193
अहंपदार्थ-निरूपण —Pgs. 203
अहंकार-निंदा —Pgs. 207
क्रिया, चिंता और वासना का त्याग —Pgs. 215
प्रमाद-निंदा —Pgs. 221
असत्-परिहार —Pgs. 227
आत्म निष्ठा का विधान —Pgs. 232
अधिष्ठान-निरूपण —Pgs. 238
समाधि-निरूपण —Pgs. 241
वैराग्य-निरूपण —Pgs. 250
ध्यान-विधि —Pgs. 254
आत्म-दृष्टि —Pgs. 257
प्रपंच का बाघ —Pgs. 265
आत्म-चिंतन का विधान —Pgs. 270
दृश्य की उपेक्षा —Pgs. 274
आत्मज्ञान का फल —Pgs. 277
जीवन्मुक्त के लक्षण —Pgs. 281
प्रारब्ध-विचार —Pgs. 291
नानात्व-निषेध —Pgs. 300
आत्मानुभव का उपदेश —Pgs. 303
बोधोपलब्धि —Pgs. 307
उपदेश का उपसंहार —Pgs. 325
शिष्य की विदा —Pgs. 350
अनुबंध चतुष्टय —Pgs. 352
ग्रंथ-प्रसंशा —Pgs. 354
अभ्यर्थना —Pgs. 355
तेरो बृहत् विराट् स्वरूप —Pgs. 356
कृतित्व —Pgs. 357
शिक्षा : पी-एच.डी. (राजनीति शास्त्र), मेरठ विश्वविद्यालय (उ.प्र.)।
रचना-संसार : सामवेद (काव्यानुवाद चौपाई छंद में), ईशादि नौ उपनिषद् (काव्यानुवाद हरिगीतिका छंद में), इहातीत क्षण (आध्यात्मिक गद्य काव्य), श्रीभगवद्गीता (काव्यानुवाद ब्रज भाषा में), वेदों पर शोध कार्य। बेध से बोध तक, जीवित समिधा (उपन्यास) शीघ्र प्रकाश्य।
सम्मान : उ.प्र. संस्कृत साहित्य अकादमी पुरस्कार, सर्वश्रेष्ठ वक्ता का सम्मान, दूरदर्शन पर वेदों पर अनेकों साक्षात्कार, अनेकों आर्य और साहित्यिक संगोष्ठियों द्वारा सम्मान, नेपाल के महाराज और मॉरिशस के राजदूत द्वारा विशेष सम्मान, वेदों की प्रखर अध्येता व शोधकर्ता, अमेरिका में तीन वैदिक सम्मेलनों में सहभागिता, अमेरिका में Emory, .G.A., G.S.U. यूनिवर्सिटी में Guest Lecture, 1999 में I.C.C.R. की ओर से भारत का .S.A. में प्रतिनिधित्व किया, विषय था ‘तुलसीदास और उनके कृतित्व’। अखिल भारतीय संस्कृत विदुषी सम्मेलन (20-22 जुलाई, 2000) में संपूर्ण कृतित्व को सम्मेलन के रूप में पढ़ा गया, Millenium Women Award 2000, अमेरिका के आर्य समाज अटलांटा में विशेष सम्मान।
आदि गुरु शंकराचार्य के विशेष स्तुति स्तोत्र का साहित्य का काव्यानुवाद; आदि गुरु शंकराचार्य के महान् ग्रंथ ‘विवेक चूड़ामणि’ का काव्यानुवाद।