विद्वान् लेखक एन.के. सिंह की पुस्तक ‘विवेक की सीमा’ अतीत और वर्तमान के बदलाव की राजनीति पर एक गंभीर टिप्पणी है। इसमें साक्ष्यों, उपाख्यानों और प्रतीकों के द्वारा दो बातों की व्याख्या की गई है—पहली, समूह या राष्ट्र तर्क के अनुसार नहीं चलते और दूसरी, हमें कभी-कभी अतर्कसंगत भी होना चाहिए। पुस्तक में सुधार की राजनीतिक अर्थव्यवस्था का विश्लेषण तो किया ही गया है, साथ ही यह भी बताया गया है कि हमें अनुकंपाशील, भावप्रवण, रचनात्मक, आशान्वित, परहितवादी और कुछ मामलों में तर्क-विरुद्ध होना चाहिए। तभी हम परिवर्तन की राजनीति में जान फूँक सकते हैं, वरना परिवर्तन की राजनीति हितों का समझौता बनकर रह जाएगी।
भारत को आज इसी रास्ते पर चलने की जरूरत है। एक दशक से भी अधिक समय पहले उदारीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई थी। तब से देश ने काफी प्रगति की है, लेकिन रफ्तार सुस्त रही है। ‘सुधार के दिन’ अतीत बनते जा रहे हैं। अत: परिवर्तन की जरूरत बढ़ गई है। भारत अब भी गौरवशाली है, अतुल्य है; लेकिन इसमें एक ऐसा नैराश्य और अवसाद दिख रहा है, जो पहले कभी नहीं देखा गया। इसके कवच में पहले से अधिक दरारें दिखने लगी हैं। वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी रहने के कारण श्री सिंह को भारत की नीति-निर्माण एवं नीति-कार्यान्वयन प्रक्रियाओं के विविध पहलुओं को करीब से देखने का दुर्लभ मौका मिला है। उसी के आधार पर इस चिंतनपरक पुस्तक में उन्होंने भारत के सुधारवाद के रास्तों का विश्लेषण किया है।
लेखक ने अपने लोकप्रिय लेखों में आधारभूत ढाँचे को सुधारने, वित्तीय क्षेत्र को खोलने, केंद्र-राज्य संबंधों को सौहार्दपूर्ण बनाने, कीमतों को विनियमित करने, सब्सिडी को तर्कसंगत बनाने और वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भारत के प्रति बदलते रवैए का विश्लेषण किया है, केवल विश्लेषण ही नहीं, बल्कि समालोचना और व्याख्या भी की है। पुस्तक में उठाए गए मुद्दे भारत के आर्थिक विकास के संदर्भ में अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।
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विषय-वस्तु
प्राकथन —Pgs. 11
प्रस्तावना —Pgs. 15
विषय-प्रवेश —Pgs. 17
खंडों की व्याया —Pgs. 21
खंड-1 : भारत का वैश्वीकरण
1. भारत और जापान : बड़ी आशाएँ —Pgs. 33
2. संसदीय निगरानी को फिर से परिभाषित करना —Pgs. 36
3. मुद्रास्फीति की संभावनाओं का प्रबंधन —Pgs. 39
4. खाद्य पदार्थों की वैश्विक कमी विचारणीय मसला है —Pgs. 42
5. स्वचालित अर्थव्यवस्था? बिलकुल नहीं —Pgs. 45
6. दिवाली के बाद चुनौती —Pgs. 48
7. सब-प्राइम अमेरिका द्वारा स्पर्श —Pgs. 51
8. मुँह चुराने का वक्त नहीं है —Pgs. 54
9. प्रोत्साहन II के परे देखना —Pgs. 57
10. एक महासागर की रिहाई —Pgs. 61
11. वर्ष 2008 में वैश्विक खतरे से कौन निपटेगा? —Pgs. 64
12. जमी हुई ऊँचाइयाँ —Pgs. 67
13. जी-20 शिखर बैठक के परे देखना —Pgs. 70
खंड-2 : अखंड विकास
14. दावोस में परस्पर निर्भरता के संदेश —Pgs. 75
15. नदी में मोड़ —Pgs. 79
16. या भारत और चीन भविष्य की गरमाहट देख सकते हैं? —Pgs. 82
17. एक नेता की खोज का मिशन —Pgs. 85
18. हम चलना शुरू करें —Pgs. 88
19. भारत के लिए एक लघु ऊर्जा योजना —Pgs. 91
20. परिवर्तन के लिए नैनो के सबक —Pgs. 94
21. और एक बूँद भी पीने के लिए नहीं है —Pgs. 97
22. भविष्य के जल-युद्ध का प्रबंधन करना —Pgs. 100
23. साफ पानी का अधिकार —Pgs. 103
खंड-3 : समावेश
24. हम अपने काम में जुट जाएँ —Pgs. 109
25. 80 करोड़ लोग —Pgs. 112
26. शतादी विकास लक्ष्य के लिए जागृति —Pgs. 115
27. हम, विस्थापित —Pgs. 118
28. बस, जो डॉटर ने आदेश दिया —Pgs. 121
खंड-4 : शामिल करनेवाली विय नीति
29. आगामी साठ वर्षों पर नजर —Pgs. 127
30. बिहार के लिए अच्छा, देश के लिए अच्छा —Pgs. 130
31. अच्छे आर्थिक समाचारों के बूते वर्ष 2008 का निर्माण —Pgs. 133
32. बजट के नरम विकल्पों को जरूर दरकिनार करना चाहिए —Pgs. 136
33. बजट 2008 —Pgs. सीधे दिल से —Pgs. 140
34. दो आयोग, एक कहानी —Pgs. 143
35. सुसंगति : अकल्पनाशील का आश्रय —Pgs. 146
36. हम किसान से बात नहीं करते —Pgs. 149
37. टैस सुधार का लंबा रास्ता —Pgs. 152
38. अच्छी तरह और बुद्धिमापूर्वक खर्च करना —Pgs. 155
39. विकास को बरकरार रखना : स्टैनफोर्ड निष्कर्ष —Pgs. 158
40. पटना में सर्वसम्मति को समझना —Pgs. 162
41. गरीबी को काबू में रखने के लिए रोजाना 1 डॉलर —Pgs. 165
42. वादे निभाने की याद दिलाना —Pgs. 169
खंड-5 : इन्फ्रास्ट्रचर (आधारभूत ढाँचा)
43. दालियान होते हुए दावोस —Pgs. 177
44. बिजली के साथ राजनीति न करें —Pgs. 180
45. एक जटिल सवाल है भूमि अधिग्रहण —Pgs. 184
खंड-6 : शिक्षा
46. भारत को शिक्षित करने की समस्या —Pgs. 189
47. भारत के खोए मध्य लिंक को बहाल करना —Pgs. 192
48. शिक्षा का सूक्ष्म प्रबंधन न करें —Pgs. 195
49. नकली के लिए शिक्षा —Pgs. 198
50. खुले समाज को पुनर्जीवित करना —Pgs. 200
51. नालंदा : एशियाई पुनर्जागरण का प्रतीक —Pgs. 203
52. इससे ग्रेड नहीं बनता —Pgs. 206
खंड-7 : संस्थान
53. केंद्र को राज्यों से यों अवश्य बात करनी चाहिए? —Pgs. 211
54. या प्रशासन बदल सकता है? —Pgs. 214
55. वेतन-वृद्धि और गंभीर परिवर्तन —Pgs. 217
56. बजट एक आश्चर्य नहीं होना चाहिए —Pgs. 220
57. संसद् के साथ समस्या —Pgs. 223
खंड-8 : राजनीतिक गतिशीलता
58. शहरी मतदाता इतना कु्रद्ध यों है? —Pgs. 229
59. वाकई एक बेहद सुस्त सदन —Pgs. 232
60. कांग्रेस और भाजपा के बीच साझा न्यूनतम कार्यक्रम —Pgs. 235
61. वामपंथियों को दोष दें? —Pgs. 238
खंड-9 : चुनाव 2009
62. विकास और रोजगार नई सरकार के मंत्र —Pgs. 245
63. वर्ष 2009 के परे की चुनावी चुनौतियाँ —Pgs. 249
64. नीतिगत समानताएँ ढूँढ़ना —Pgs. 252
65. चुनाव 2009 के सबक —Pgs. 256
66. 2009 के चुनाव के बाद बजट संबंधी बाध्यताएँ —Pgs. 260
67. बहुत से वादे पूरे करने हैं — I —Pgs. 264
68. बहुत से वादे पूरे करने हैं —II —Pgs. 269
नंद किशोर (एन.के.) सिंह वर्तमान में बिहार से राज्यसभा के सदस्य हैं। अकादमिक, प्रशासनिक और राजनीतिक क्षेत्र में उनका दीर्घकालीन गहन अनुभव रहा है। उन्होंने राजकीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय नीति-निर्माण में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
श्री सिंह का जन्म पटना (बिहार) में हुआ। उनकी शिक्षा सेंट स्टीफेंस कॉलेज और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में हुई। भारतीय प्रशासनिक सेवा के बिहार कैडर में शामिल होने से पहले वे सेंट स्टीफेंस कॉलेज में लेक्चरर रहे। उन्होंने केंद्रीय वित्त मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव (आर्थिक मामले), व्यय सचिव और राजस्व सचिव के रूप में काम किया। श्री सिंह प्रधानमंत्री के सचिव, योजना आयोग के सदस्य और बिहार राज्य योजना आयोग के उपाध्यक्ष भी रहे। वे अपनी पत्नी एवं तीन बच्चों के साथ दिल्ली और पटना में रहते हैं।