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स्वामी विवेकानंद आध्यात्मिक जगत् के ऐसे जाज्वल्यमान नक्षत्र हैं, जिन्होंने अपनी आभा से भारत ही नहीं, संपूर्ण विश्व को प्रकाशमान किया। वे मात्र संत-स्वामी ही नहीं थे, एक महान् देशभक्त, ओजस्वी वक्ता, अद्वितीय विचारक, लेखक और दरिद्र-नारायण के अनन्य सेवक थे।
प्रसिद्ध लेखक रोम्याँ रोलाँ ने उनके बारे में कहा था—''उनके द्वितीय होने की कल्पना करना भी असंभव है। वे जहाँ भी गए, प्रथम रहे। हर कोई उनमें अपने नेता का दिग्दर्शन करता। वे ईश्वर के सच्चे प्रतिनिधि थे। सबको अपना बना लेना ही उनकी विशिष्टता थी।’ ’
स्वामीजी ने मानवमात्र का आह्वïन किया—''उठो, जागो, स्वयं जागकर औरों को जगाओ। अपने नर-जन्म को सफल करो और तब तक रुको नहीं, जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।’ ’ उनतालीस वर्ष के छोटे से जीवनकाल में स्वामी विवेकानंद जो काम कर गए, आनेवाली शताब्दियों तक वे मानव-पीढिय़ों का मार्गदर्शन करते रहेंगे।
स्वामी विवेकानंद का चरित्र ऐसा है, जिससे प्रेरणा पाकर अनगिनत लोगों ने जीवन का सुपथ प्राप्त किया। भारतीय संस्कृति के उद्घोषक एवं मानवता के महान् पोषक स्वामी विवेकानंद और उनके जीवन-दर्शन को गहराई से जानने-समझने में सहायक क्रांतिकारी पुस्तक।
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अनुक्रम
लेखक-निवेदन — ७
कृतज्ञता स्वीकार — ८
तथ्य सूत्र — ११
कुछ पत्र — १५
१. पुश्तैनी घर में पट्टीदारी-संघात का विषवृक्ष — १७
२. पितृदेव के बेनामी उपन्यास में परिवार की गोपन कथा — २८
३. पिता भी संन्यासी, पुत्र भी संन्यासी : एक नजर में विश्वनाथ दा — ६२
४. नॉट आउट गुरु का नॉट आउट शिष्य — ६७
५. सावन के अंतिम दिन : काशीपुर उद्यान में — ८३
६. ठाकुर का चिकित्सक-संवाद — ११३
७. स्वामीजी की अविश्वसनीय एकाउंटिंग पॉलिसी — ११६
८. गुरु का रामकृष्णनॉमिस और शिष्य का विवेकानंदनॉमिस — १४०
९. विडंबित विवेकानंद — १५३
१०. अविश्वसनीय गुरु के अविश्वसनीय शिष्य — २०१
११. चिकित्सक के चेंबर में चालीस रुपए — २६१
१२. अपना काम मैंने कर दिया, बॉस — २७५
१३. अविश्वसनीय संगठक — विवेकानंद — २८६
१४. अस्ताचल के पथ पर — २९६
शंकर (मणि शंकर मुखर्जी) बँगला के सबसे ज्यादा पढ़े जानेवाले उपन्यासकारों में से हैं। ‘चौरंगी’ उनकी अब तक की सबसे सफल पुस्तक है, जिसका हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है; साथ ही सन् 1968 में उस पर बँगला में फिल्म भी बन चुकी है। ‘सीमाबद्ध’ और ‘जन अरण्य’ उनके ऐसे उपन्यास हैं, जिन पर सुप्रसिद्ध फिल्मकार सत्यजित रे ने फिल्में बनाईं। हिंदी में प्रकाशित उनकी कृति ‘विवेकानंद की आत्मकथा’ बहुप्रशंसित रही है।
संप्रति : कोलकाता में निवास। अनुवादकसुशील गुप्ता अब तक लगभग 130 बांग्ला रचनाओं का हिंदी में अनुवाद कर चुकी हैं। उनके कई कविता-संग्रह प्रकाशित हैं। उन्होंने प्रोफेसर भारती राय की आत्मकथा ‘ये दिन, वे दिन’ का भी मूल बांग्ला से अनुवाद किया।