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शिक्षा ही वह उपादान है, जो मनुष्य के बौद्धिक स्तर को बढ़ाकर उसके जीवन को सुखद बनाता है। शिक्षा बिना मानव जीवन पंगु है। जिस मनुष्य के पास जैसी शिक्षा होगी, उसकी बुद्धि वैसी ही होगी। शिक्षा द्वारा मनुष्य अपना विकास तो करता ही है, साथ में समाज का विकास भी करता है।
विश्व-विख्यात आध्यात्मिक विभूति विवेकानंद ने अपने ओजस्वी विचारों और दूरदृष्टि से समाज में नई चेतना जाग्रत् की, उसे एक नई दिशा दी। आज की पहली आवश्यकता है कि स्वामी विवेकानंद के जीवन-दर्शन से हम शिक्षा प्राप्त करें। यह पुस्तक उसी उद्देश्य की पूर्ति करती है।
स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं को आगे रखकर हम भारत में शिक्षा की ऐसी लहर चलाएँ, जो शहर-शहर, गाँव-गाँव और घर-घर को महका दे; नए रूप में भारत को उसकी पुरानी गरिमा को दिलाने का प्रयास करें और एक बार फिर दुनिया भारत को जगद्गुरु के रूप में जाने।
शिक्षा से बुद्धि का, बुद्धि से मनुष्य का और मनुष्य से समाज का विकास होता है। इस क्रम में स्वामी विवेकानंद की शिक्षा से समृद्ध यह पुस्तक उपयेगी होने के साथ ही उनकी शिक्षा को सरल शब्दों में जन-जन तक पहुँचाती है।
हिंदी के प्रतिष्ठित लेखक महेश शर्मा का लेखन कार्य सन् 1983 में आरंभ हुआ, जब वे हाईस्कूल में अध्ययनरत थे। बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झाँसी से 1989 में हिंदी में स्नातकोत्तर। उसके बाद कुछ वर्षों तक विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए संवाददाता, संपादक और प्रतिनिधि के रूप में कार्य। लिखी व संपादित दो सौ से अधिक पुस्तकें प्रकाश्य। भारत की अनेक प्रमुख हिंदी पत्र-पत्रिकाओं में तीन हजार से अधिक विविध रचनाएँ प्रकाश्य। हिंदी लेखन के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए अनेक पुरस्कार प्राप्त, प्रमुख हैंमध्य प्रदेश विधानसभा का गांधी दर्शन पुरस्कार (द्वितीय), पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी, शिलाँग (मेघालय) द्वारा डॉ. महाराज कृष्ण जैन स्मृति पुरस्कार, समग्र लेखन एवं साहित्यधर्मिता हेतु डॉ. महाराज कृष्ण जैन स्मृति सम्मान, नटराज कला संस्थान, झाँसी द्वारा लेखन के क्षेत्र में ‘बुंदेलखंड युवा पुरस्कार’, समाचार व फीचर सेवा, अंतर्धारा, दिल्ली द्वारा लेखक रत्न पुरस्कार इत्यादि।
संप्रति : स्वतंत्र लेखक-पत्रकार।