Prabhat Prakashan, one of the leading publishing houses in India eBooks | Careers | Events | Publish With Us | Dealers | Download Catalogues
Helpline: +91-7827007777

Vivekanand Ki Atmakatha (PB)   

₹500

In stock
  We provide FREE Delivery on orders over ₹1500.00
Delivery Usually delivered in 5-6 days.
Author Sankar
Features
  • ISBN : 9789350481462
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • Sankar
  • 9789350481462
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2020
  • 376
  • Soft Cover
  • 450 Grams

Description

स्वामी विवेकानंद नवजागरण के पुरोधा थे। उनका चमत्कृत कर देनेवाला व्यक्‍तित्व, उनकी वाक‍्‍शैली और उनके ज्ञान ने भारतीय अध्यात्म एवं मानव-दर्शन को नए आयाम दिए।
मोक्ष की आकांक्षा से गृह-त्याग करनेवाले विवेकानंद ने व्यक्‍तिगत इच्छाओं को तिलांजलि देकर दीन-दुःखी और दरिद्र-नारायण की सेवा का व्रत ले लिया। उन्होंने पाखंड और आडंबरों का खंडन कर धर्म की सर्वमान्य व्याख्या प्रस्तुत की। इतना ही नहीं, दीन-हीन और गुलाम भारत को विश्‍वगुरु के सिंहासन पर विराजमान किया।
ऐसे प्रखर तेजस्वी, आध्यात्मिक शिखर पुरुष की जीवन-गाथा उनकी अपनी जुबानी प्रस्तुत की है प्रसिद्ध बँगला लेखक श्री शंकर ने। अद‍्भुत प्रवाह और संयोजन के कारण यह आत्मकथा पठनीय तो है ही, प्रेरक और अनुकरणीय भी है।

______________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________

अनुक्रमणिका

प्राकथन — 7

1. मेरा बचपन — 19

2. श्रीरामकृष्ण से परिचय — 26

3. श्रीरामकृष्ण ही मेरे प्रभु — 56

4. आदि मठ बरानगर और मेरा परिव्राजक जीवन — 77

5. पारिवारिक मामले की विडंबना — 85

6. कुछ चिट्ठियाँ, कुछ बातचीत — 88

7. परिव्राजक का भारत-दर्शन — 99

8. विदेश यात्रा की तैयारी — 111

9. दैव आह्वान और विश्व धर्म सभा — 113

10. अमेरिका की राह में — 116

11. अब अमेरिका की ओर — 119

12. शिकागो, 2 अतूबर, 1893 — 127

13. धर्म महासभा में — 133

14. घटनाओं की घनघटा — 138

15. संग्राम संवाद — 141

16. भारत वापसी — 242

17. इस देश में मैं या करना चाहता हूँ — 277

18. पश्चिम में दूसरी बार — 296

19. फ्रांस — 319

20. मैं विश्वास करता हूँ — 327

21. विदा वेला की वाणी — 334

22. सखा के प्रति — 353

परिशिष्ट — 355

मंतव्यावली — 357

तथ्य सूत्र — 358

The Author

Sankar

शंकर 
शंकर (मणि शंकर मुखर्जी) बांग्ला के सबसे ज्यादा पढ़े जानेवाले उपन्यासकारों में से हैं। ‘चौरंगी’ उनकी अब तक की सबसे सफल पुस्तक है, जिसका हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में अनुवाद हो चुका है; साथ ही सन् 1968 में इस पर बांग्ला में फिल्म भी बन चुकी है। ‘सीमाबद्ध’ और ‘जन अरण्य’ उनके ऐसे उपन्यास हैं, जिन पर सत्यजित रे ने फिल्में बनाईं। संप्रति कोलकाता में निवास।

Customers who bought this also bought

WRITE YOUR OWN REVIEW