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डॉ. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी अपने समय के सुचिंतित विचारक तथा विभिन्न विषयों के प्रसिद्ध विद्वान् थे। उनके चिंतन का आधार उनका राष्ट्र-प्रेम तथा भारतीय धरोहर के प्रति उनकी अनन्य निष्ठा थी। इसी आधारपीठिका पर वह अपने चिंतन का साम्राज्य फैलाते थे, चाहे वह भारतवंशियों के सांस्कृतिक जुड़ाव की बात हो या प्रकृति संबंधित जैन घोषणा-पत्र हो या वेद संहिताएँ हों अथवा वेदांत या फिर सगुण या निर्गुण साधना हो। डॉ. सिंघवी मानते थे कि भाषा, साहित्य और संस्कृति मनुष्य की सामाजिक अस्मिता के अंग और अवयव हैं। इनकी सुरक्षा और संवर्धन की बात राष्ट्रीय एकता को संपुष्ट करने के लिए जरूरी है।
‘विविधा’ में संकलित उनके 21 निबंधों में भारत की निरंतरता को समझने की कोशिश है और अतीत के उत्तराधिकार को सँजोकर आगे बढ़ने का आह्वान है। इन सब निबंधों में भारत की झलक दिखाई पड़ती है। डॉ. सिंघवी के लिए भारत स्वयं मनुष्यजाति की एक बहुत बड़ी कविता है। उसकी सांस्कृतिक आराधना में भारत के वाक् और अर्थ को डॉ. सिंघवी ने हमेशा संपृक्त पाया है। इन निबंधों का बार-बार पारायण भारत और उसकी संस्कृति तथा उसके विचार को समझने के लिए बहुत जरूरी है।
डॉ. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी भारत के अग्रणी संविधान विशेषज्ञ, लेखक, कवि, संपादक, भाषाविद् और साहित्यकार हैं । भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों और अमेरिका के हॉर्वर्ड, कॉर्नेल तथा बर्कले विश्वविद्यालयों से पढ़ने-पढ़ाने के लिए संबद्ध रहे । अनेक भारतीय तथा विदेशी विश्वविद्यालयों द्वारा सर्वोच्च मानद उपाधियों से अलंकृत । ' न्यायवाचस्पति ', ' साहित्यवाचस्पति ' इत्यादि मानद उपलब्धियों से भी समलंकृत । वर्ष 1974 में कलकत्ता विश्वविद्यालय द्वारा मानद टैगोर विधि प्रोफेसर के रूप में चयन ।
लगभग 70 पुस्तकों की रचना या संपादन किया, जिनमें प्रमुख हैं-' जैन टेंपल्स इन ऐंड अराउंड द वर्ल्ड ', ' डेमोक्रेसी एंड रूल ऑफ लॉ ', ' टुवर्ड्स ग्लोबल टुगेदरनेस ', ' टुवर्ड्स ए न्यू ग्लोबल ऑर्डर ', ' ए टेल ऑफ श्री सिटीज ', ' फ्रीडम ऑन ट्रायल ', ' भारत और हमारा समय ', ' संध्या का सूरज ' ( कविताएँ) आदि ।
1998 में प्रतिष्ठित ' पद्म विभूषण ' से सम्मानित । सन् 1991 से 1998 तक यूनाइटेड किंगडम में भारत के उच्चायुक्त रहे । रोटरी इंटरनेशनल के ' एंबेसेडर ऑफ एक्सीलेंस पुरस्कार ' तथा न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र संघ के महामंत्री यू थांट के नाम से स्थापित ' शांति पुरस्कार ' से सम्मानित । हेग में स्थायी विवाचन न्यायालय के न्यायमूर्ति ।
वर्ष 1962 में जोधपुर संसदीय क्षेत्र से निर्दलीय चुने गए । 1998 से 2004 तक राज्यसभा के सदस्य रहे ।
भारतीय विद्या भवन इंटरनेशनल, इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट्स तथा इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के पूर्व अध्यक्ष । जमनालाल बजाज एवं ज्ञानपीठ पुरस्कारों के प्रवर मंडलों तथा गांधीजी द्वारा स्थापित सस्ता साहित्य मंडल के अध्यक्ष । 1200 से अधिक राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय सामाजिक-सांस्कृतिक संस्थाओं के संरक्षक-संस्थापक ।
संप्रति : ' साहित्य अमृत ' मासिक के संपादक ।