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बचपन के दिन भी क्या दिन थे.. .नभ में उड़ते तितली बन के.. ' उम्र की तीसरी सीढ़ी पर पाँव रखते ही आदमी को रह- रहकर सताने लगती है बचपन और जवानी की वह मौज-मस्ती जब वह जिंदगी की हरी- भरी वादियों में झूमता-गाता-इठलाता किसी भी तूफान-बवंडर से टकरा जाने के लिए भरपूर बल और दमखम अपने तन- बदन में महसूस करता था । पर उम्र की आखिरी दहलीज के निकट वह आज बूढ़ों की जमात में शामिल हो गया है । अनायास उसके सोचने व काम करने की शक्ति में शिथिलता आने लगी है । बैसाखियों के सहारे चलने वाला वह खुद को बहुत ही मजबूर और कमजोर इनसान समझने लगा है । उसके अपने परिवार के लोग भी उससे एक फालतू और बेकार की चीज की तरह व्यवहार करने लगे हैं । और यहीं से शुरू हो जाता है उसके व्यक्तित्व के विघटन का दौर । न केवल उसकी मानसिकता चुक जाती है वरन् वह तजुर्बों का एक ताबूत बनकर रह जाता है जिसमें उसके बेटे-बेटियाँ पोते-पोतियाँ तथाकथित आधुनिकता की कीलें ठोक देते हैं । बूढ़ों की मानसिकता को रूपायित करने, उनकी दुविधाओं को चित्रित करने और वर्तमान सामाजिक व्यवस्था में उनकी पीड़ा को शब्द देने का ही एक महत्वपूर्ण प्रयास इन कहानियों में है ।
जन्म : सन् 1944, संभल ( उप्र.) ।
डॉ. अग्रवाल की पहली पुस्तक सन् 1964 में प्रकाशित हुई । तब से अनवरत साहित्य- साधना में रत आपके द्वारा लिखित एवं संपादित एक सौ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । आपने साहित्य की लगभग प्रत्येक विधा में लेखन-कार्य किया है । हिंदी गजल में आपकी सूक्ष्म और धारदार सोच को गंभीरता के साथ स्वीकार किया गया है । कहानी, एकांकी, व्यंग्य, ललित निबंध, कोश और बाल साहित्य के लेखन में संलग्न डॉ. अग्रवाल वर्तमान में वर्धमान स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बिजनौर में हिंदी विभाग में रीडर एवं अध्यक्ष हैं । हिंदी शोध तथा संदर्भ साहित्य की दृष्टि से प्रकाशित उनके विशिष्ट ग्रंथों-' शोध संदर्भ ' ' सूर साहित्य संदर्भ ', ' हिंदी साहित्यकार संदर्भ कोश '-को गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ है ।
पुरस्कार-सम्मान : उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ द्वारा व्यंग्य कृति ' बाबू झोलानाथ ' (1998) तथा ' राजनीति में गिरगिटवाद ' (2002) पुरस्कृत, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, नई दिल्ली द्वारा ' मानवाधिकार : दशा और दिशा ' ( 1999) पर प्रथम पुरस्कार, ' आओ अतीत में चलें ' पर उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ का ' सूर पुरस्कार ' एवं डॉ. रतनलाल शर्मा स्मृति ट्रस्ट द्वारा प्रथम पुरस्कार । अखिल भारतीय टेपा सम्मेलन, उज्जैन द्वारा सहस्राब्दी सम्मान ( 2000); अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानोपाधियाँ प्रदत्त ।