₹350
रज्जब को स्मरण हो आया कि पत्नी के बुखार की वजह से अंटी का बोझ कम कर देना पड़ा है और स्मरण हो आया गाड़ीवान का वह हठ, जिसके कारण उसको कुछ पैसे व्यर्थ ही देने पड़े थे। उसको गाड़ीवान पर क्रोध था, परंतु उसको प्रकट करने की उस समय उसके मन में इच्छा न थी।
बातचीत करके रास्ता काटने की कामना से उसने वार्त्तालाप आरंभ किया—
‘गाँव तो यहाँ से दूर मिलेगा।’
‘बहुत दूर। वहीं ठहरेंगे।’
‘किसके यहाँ?’
‘किसीके यहाँ भी नहीं। पेड़ के नीचे। कल सवेरे ललितपुर चलेंगे।’
‘कल का फिर पैसा माँग उठना।’
‘कैसे माँग उठूँगा? किराया ले चुका हूँ। अब फिर कैसे माँगूँगा?’
‘जैसे आज गाँव में हठ करके माँगा था। बेटा, ललितपुर होता तो बतला देता।’
‘क्या बतला देते? क्या सेंत-मेंत गाड़ी में बैठना चाहते थे?’
‘क्यों बे, रुपए लेकर भी सेंत-मेंत का बैठना कहता है! जानता है, मेरा नाम रज्जब है। अगर बीच में गड़बड़ करेगा तो यहीं छुरी से काटकर फेंक दँूगा।’
रज्जब क्रोध को प्रकट करना नहीं चाहता था, परंतु शायद अकारण ही वह भलीभाँति प्रकट हो गया।
—इसी संग्रह से
ऐतिहासिक लेखन के लिए प्रसिद्ध हिंदी के मूर्धन्य साहित्यकार बाबू वृंदावनलाल वर्मा की रहस्य, रोमांच, साहस और पराक्रम से भरपूर कहानियों का पठनीय संकलन।
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अनुक्रम
1. शेर का शिकार — 7
2. शरणागत — 21
3. अंबरपुर के अमर वीर — 28
4. रक्षा — 32
5. दीर्घजीवी कैसे हों? — 45
6. गुप्त सभा — 48
7. हमीदा — 54
8. नाना साहब और कानपुर की वह दुर्घटना — 60
9. तोषी — 66
10. शेरशाह का न्याय — 72
11. रसोइया तक ऐसा विकट सिपाही — 79
12. कुँअर गुल मुहम्मद — 82
13. सरकारी कलम-दवात नहीं मिलेगी — 92
14. चोर बाजार की गंगोत्री — 96
15. केवलसिंह — 102
16. सुखी रहो मेरी रानी — 106
17. अण्णाजी पंत — 109
18. ले. कर्नल नीरोद बरन बनर्जी — 116
19. युद्ध बचाया — 120
20. कलाकार का दंड — 125
21. सूबेदार चेविंग रिंचन — 139
22. वचन का निर्वाह — 144
23. जैनाबादी बेगम — 148
24. लाड़कुँवरि की बहादुरी — 156
25. सिपाही नामदेव जादो (यादव) — 163
26. परम वीर दिराम — 167
27. रामगढ़ की रानी अवंतीबाई — 170
मूर्द्धन्य उपन्यासकार श्री वृंदावनलाल वर्मा का जन्म 9 जनवरी, 1889 को मऊरानीपुर ( झाँसी) में एक कुलीन श्रीवास्तव कायस्थ परिवार में हुआ था । इतिहास के प्रति वर्माजी की रुचि बाल्यकाल से ही थी । अत: उन्होंने कानून की उच्च शिक्षा के साथ-साथ इतिहास, राजनीति, दर्शन, मनोविज्ञान, संगीत, मूर्तिकला तथा वास्तुकला का गहन अध्ययन किया ।
ऐतिहासिक उपन्यासों के कारण वर्माजी को सर्वाधिक ख्याति प्राप्त हुई । उन्होंने अपने उपन्यासों में इस तथ्य को झुठला दिया कि ' ऐतिहासिक उपन्यास में या तो इतिहास मर जाता है या उपन्यास ', बल्कि उन्होंने इतिहास और उपन्यास दोनों को एक नई दृष्टि प्रदान की ।
आपकी साहित्य सेवा के लिए भारत सरकार ने आपको ' पद्म भूषण ' की उपाधि से विभूषित किया, आगरा विश्वविद्यालय ने डी.लिट. की मानद् उपाधि प्रदान की । उन्हें ' सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार ' से भी सम्मानित किया गया तथा ' झाँसी की रानी ' पर भारत सरकार ने दो हजार रुपए का पुरस्कार प्रदान किया । इनके अतिरिक्त उनकी विभिन्न कृतियों के लिए विभिन्न संस्थाओं ने भी उन्हें सम्मानित व पुरस्कृत किया ।
वर्माजी के अधिकांश उपन्यासों का प्रमुख प्रांतीय भाषाओं के साथ- साथ अंग्रेजी, रूसी तथा चैक भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है । आपके उपन्यास ' झाँसी की रानी ' तथा ' मृगनयनी ' का फिल्मांकन भी हो चुका है ।