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आज के भौतिकवादी युग में चहुँ ओर मैं और मेरा पैकेज, मैं और मेरे परिवार में उपभोक्तावाद एवं भोगवाद का बोलबाला है, जिससे नवयुवकों में सही-गलत, सत्य-असत्य, नैतिकता-अनैतिकता, सदाचार-दुराचार आदि को जानने व समझने की शक्ति घटती जा रही है। विविधताओं को भिन्नता यानी भेद बनाकर भड़काया जा रहा है। मानवीय संवेदनाएँ बिखर न जाएँ, इसकी चिंता खाए जा रही है। ऐसे में इस पुस्तक की विषय-वस्तु लेखक के अपने अनुभवों से योग्य मार्गदर्शन, कुशल व्यक्तित्व-निर्माण के साथ-साथ स्वार्थ से निस्स्वार्थ यानी समाज व राष्ट्र की ओर बढ़ाने का सक्षम प्रयत्न है। विशेष रूप से लेखक ने युवा पीढ़ी को सामने रखकर लेखन किया है। युवा पीढ़ी का वर्तमान में जागत् होना, प्रेरित होना और सही दिशा में ऊर्जावान होना अत्यावश्यक है। खुशहाल व्यक्ति से ही खुशहाल समाज बनता है। स्वयं प्रसन्न रहो तथा दूसरों को प्रसन्नता दो, न कि स्वयं तनाव, हिंसा, शोषण में रहो तथा दूसरों को भी तनाव और हिंसा दो। ऐसे युवाओं से व्यक्तित्व बनता है, जो समृद्ध, समर्थ एवं आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाते हैं। कहते हैं कि अहमियत और हैसियत का शत्रु अहं है। आप अहं छोड़कर देखिए, हैसियत बनी रहेगी और अहमियत बढ़ती जाएगी। प्रस्तुत पुस्तक में स्वयं के जीवन में घटित घटनाओं से प्राप्त सबक को कुशलता से सँजोया है। कुछ छोड़ने से ही कुछ प्राप्त होता है।
अरविंद पांडेय का जन्म 11 जुलाई 1988, तदनुसार आषाढ़ कृष्ण पक्ष त्रयोदशी (प्रदोष ) को ग्राम-इटवाँ, पोस्ट-अमिलाई, चंदौली में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा गृह जनपद चंदौली में ही पूर्ण हुई। वीर
बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई पूरी कर
वाराणसी के हरिश्चंद्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय से विधि स्नातक
(LL.B.) की पढ़ाई पूरी की। तदुपरांत संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी से आचार्य तथा पत्रकारिता एवं जनसंचार विज्ञान में परास्नातक (M.J.M.C.) की पढ़ाई पूरी की। समाचार पत्रों के लिए समसामयिक संपादकीयों का लेखन। सामाजिक क्षेत्र में रुचि होने के कारण युवावस्था से ही शिक्षक, शिक्षा और समाज विषयों पर क्षेत्रीय संगोष्ठियाँ कीं। युवा प्रतिनिधियों को जोड़कर युवा संवाद के माध्यम से देश भर में युवाओं को जोड़ा एवं ‘व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण’ के लिए प्रेरित किया।