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व्यक्ति के जविन के मुख्यत: छह पड़ाव होते हैं-शिशु बालक, किशोर, युवा, प्रौढ एवं वृद्ध । इन्हीं अवस्थाओं में व्यक्तित्व का निर्माण और विकास होता है । व्यक्तित्व- निर्माण में अनेक अवरोध आते हैं । हर अवस्था की अपनी एक क्षमता, संभावनाएँ एवं सीमाएँ होती हैं । हर व्यक्ति की दो तसवीरें होती हैं- धवल और धूमिल । चरित्र के कुछ विशेष गुणों के कारण ही एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में अंतर मालूम पड़ता है ।
जिस किसी के भी जीवन में अच्छाई, सदाचार, विनम्रता, सच्चाई एवं विश्वसनीयता होगी-उसका प्रभाव सब पर अवश्य होगा । ऐसा व्यक्ति ही रचनात्मक तथा सकारात्मक कार्य कर सकता है । जो व्यक्ति इन गुणों से युक्त होगा, उसमें नैतिकता अपने आप आ जाएगी ।
प्रस्तुत पुस्तक में विभिन्न क्षेत्रों के अनुकरणीय व्यक्तित्वों का दिग्दर्शन भी कराया गया है, ताकि किशोर एवं युवा उनके जीवन- अनुभवों से लाभ उठाएँ और उन्हें अपना आदर्श मानकर अपने जीवन को उज्ज्वल बनाएँ तथा आदर्श व्यक्तित्व का निर्माण करें ।
आशा है, यह व्यावहारिक एवं वस्तुपरक पुस्तक सभी आयु वर्ग के लोगों को पसंद आएगी और उनके व्यक्तित्व-निर्माण में सहायक सिद्ध होगी ।
जन्म : 15 मार्च, 1923 ।
शिक्षा : प्राथमिक स्तर से मैट्रीकुलेशन तक लगातार मेरिट छात्रवृत्ति तथा डिग्री स्तर पर आगरा कॉलेज की ऑलराउंड मेरिट स्कॉलरशिप ।
एम.बी.बी.एस. के तृतीय वर्ष में फार्मेसी मेटीरिया मेडिका तथा फॉरमेकालॉजी में सर्टिफिकेट ऑफ ऑनर । एम.बी.बी.एस. अंतिम वर्ष में सर्जरी में प्रथम स्थान आने पर पुरस्कार तथा सर्टिफिकेट ।
सन् 1951 में मास्टर ऑफ सर्जरी ( एम.एस.) की उपाधि ।
सेवा : एक वर्ष तक कॉलेज में अध्यापन-कार्य । मेडिकल कॉलेज, नागपुर में दो वर्ष तक ' लेक्चरर इन सर्जरी ' के पद पर कार्य किया । इसी वर्ष ऑल इंडिया एसोसिएशन ऑफ सर्जन्स की सदस्यता मिली । सन् 1953 में लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित साक्षात्कार में प्रथम स्थान तथा सिविल सर्जन के पद पर नियुक्ति । सन् 1981 में सेवानिवृत्ति ।
प्रथम कृति ' असामयिक मृत्यु : कारण और बचाव ' पुरस्कृत, ' आवाज और हम ' भी प्रशंसित और चर्चित ।