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Vyatha Kahe Panchali (Hindi)   

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Author Urvashi Agrawal ‘Urvi’
Features
  • ISBN : 9789390923045
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • Urvashi Agrawal ‘Urvi’
  • 9789390923045
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2022
  • 648
  • Soft Cover
  • 500 Grams

Description

"पाँच पिया स्वीकारे क्यूँ थे। 
खुद ही भाग बिगाड़े क्यूँ थे। 

काश विशेधी हो जाती मैं। 
थोड़ा क्रोधी हो जाती मैं। 

काश न मेरे हिस्से होते। 
शुरू नहीं फिर किस्से होते। 

काश वर्ण को वर लेती मैं। 
वाणी वश में कर लेती मैं। 

कर्ण अगर ना होता शायद। 
तो संग्राम न होता शायद। 

दुःशासन मतिमंद न होता। 
रिश्तों में फिर द्वंद न होता। 

जो दुर्योधन क्रुद्ध न होता। 
तो शायद ये युद्ध न होत। 

यूँ ना काश विभाजन होता। 
अर्जुन ही बस साजन होता। 

खुले अगर ये बाल न होते।
श्वेत्‌ पृष्ठ फिर लाल न होते

यदि मेरा अपमान न होता। 
गिद्धों का जलपान न होता। 

मौन अगर गुरुदेव न होते। 
रण आँगन में प्राण न खोते। 

काश सत्य का साथ निभाते। 
और बड़े भी कुछ कह पाते। 

सत्य यही जो समर न होता। 
कुरुक्षेत्र फिर अमर न होता। 

नारी का अपमान न होता। 
कुरुक्षेत्र शमशान न होता। 

The Author

Urvashi Agrawal ‘Urvi’

उर्वशी अग्रवाल 'उर्वी'
बाल्यकाल से ही कविताएँ लिखने में विशेष रुचि। समय के साथ-साथ ग़ज़लें लिखने का भी अनुभव। महिला विषयों, विशेषकर उनकी विभिन्न भावनाओं को कविताओं, ग़ज़लों, दोहों और चौपाइयों के माध्यम से प्रस्तुत करती हैं। हिंदी के अतिरिक्त सरैकी भाषा में भी काव्य सृजन। आकाशवाणी द्वारा आयोजित हिंदी व सरैकी के कई काव्य प्रसारणों व कविता पाठ में सम्मलित हुई हैं। अनेक टी.वी. चैनलों के कार्यक्रमों में कविताएँ व ग़ज़लें प्रस्तुत की हैं। अब तक लगभग एक हज़ार हिंदी कविताओं व पाँच सौ ग़ज़लों का सृजन। पाँच कविता व ग़ज़ल-संग्रह शीघ्र ही प्रकाशित होने वाले हैं, जिनमें प्रमुख हैं खण्डकाव्य ‘व्यथा कहे पंचाली’ व दोहा संग्रह ‘मैं शबरी हूँ राम की’। दिल्ली व उसके आप-पास होने वाले कवि सम्मेलनों एवं मुशायरों में सक्रिय भागीदारी।

काव्य मंच संचालन में सिद्धहस्त एवं कई सफल कवि सम्मेलनों, काव्य गोष्ठियों का संचालन कर चुकी हैं।

संप्रति: 
वर्तमान में सुविख्यात हिंदी साहित्यिक पत्रिका ‘साहित्य अमृत’ की उप-संपादिका हैं।

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