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स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद प्रशासन में राजभाषा के रूप में हिंदी के प्रयोग और प्रगामी प्रयोग पर जोर दिया गया। अनुवाद शीघ्र ही एक व्यापक विषय बन गया। विज्ञान, प्रौद्योगिकी, विधि, वाणिज्य तथा सर्वसुलभ रूप में साहित्य के क्षेत्र में भी अनुवाद का स्थान अत्यंत महत्त्वपूर्ण एवं अनिवार्य लगने लगा। प्रस्तुत ग्रंथ के कुछ अध्यायों में व्यावहारिक अनुवाद के क्षेत्र में उतरनेवालों के लिए आवश्यक मार्ग निर्देश दिए गए हैं। अनुवाद के मूल्यांकन के मानक अभी नहीं बने हैं। साहित्य में सृजनात्मक वाड्मय की रचना के बाद लक्षण ग्रंथ एवं व्याकरण ग्रंथ की जरूरत पड्ती है। अनुवाद के संदर्भ में एक लघु प्रयास ‘अनुवाद की स्तरीयता’ नामक अध्याय में किया गया है। हिंदी क्षेत्र में सिद्धांत एवं विशेषज्ञ ‘तत्काल भाषांतरण’ अथवा ‘इंटरप्रेटेशन’ पर अभी अधिक ध्यान नहीं दे सकते हैं; जबकि यह आज बहुत जरूरी एवं उर्वर क्षेत्र है। इस विशेष अनुवाद विधा की कुछ बारीकियों के विश्लेषण का प्रयास भी इस ग्रंथ में किया गया है। अंग्रेजी-हिंदी अनुवाद आज निरंतर किया जाता है; परंतु उसके व्यावहारिक बिंदु (चेक प्वाइंट) पर सोदाहरण प्रकाश कम ही डाला गया है। इस पुस्तक में दो बड़े अध्यायों में इसीके विभिन्न पहलुओं पर विशद विवेचन प्रस्तुत किया है। विश्वास है, यह पुस्तक अनुवाद कला में कुशलता प्राप्ति में सहायक होने के साथ-साथ आम पाठकों के लिए भी ज्ञानवर्द्धक सिद्ध होगी।
शिक्षा : एम. ए. (संस्कृत, मद्रास ; हिंदी, काशी), पी-एच.डी. (सागर)।
कार्यक्षेत्र : केरल विश्वविद्यालय के विभिन्न कॉलेजों में अध्यापन के तदुपरांत केरल विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्राध्यापक और विभागाध्यक्ष। कोचीन विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रथम आचार्य और विभागाध्यक्ष तथा भाषा संकाय के डीन।
दक्षिण के अनेक विश्वविद्यालयों से विभिन्न प्रकार से सतत संबद्ध। कई अखिल भारतीय समितियों के सदस्य तथा राज्य स्तर और राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कारों से सम्मानित।
लेखन : दक्षिण के प्रतिष्ठति ललित निबंधकार। विशेषत: अनुवाद में रुचि। मलयालम, तमिल, हिंदी और अंग्रेजी का परस्पर अनुवाद किया। अनुवाद के सौद्धांतिक एवं व्यावहारिक पक्ष के अध्यापन और चिंतन में वर्षों से लगे हैं।
रचनाएँ : ‘शहर सो रहा है’, ‘उठता चाँद, डूबता सूरज’, ‘फूल और काँटे’ (ललित निबंध)।
‘जड़ें’, ‘आधी घड़ी’ (मलयालम उपन्यासों का अनुवाद)।
तुकराम (अंग्रेजी-मलयालम अनुवाद)।
‘अनुवाद कला’, ‘अनुवाद : भाषाएँ-समस्याएँ’, ‘कार्यालय : विधि और पत्राचार’ आदि। ‘अनुवाद कला’ नामक पुस्तक विशेष लोकप्रिय।