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बच्चे-बड़े, विद्यार्थी-शिक्षक, स्त्री-पुरुष—सभी को कहानियाँ पसंद होती हैं। हर कहानी में पढ़नेवाला अपने आपको ढूँढ़ता है, खोजता है कि कहानी का कोई पात्र या घटना उसके जीवन से जुड़ी तो नहीं।
प्रस्तुत पुस्तक ‘वाह जिंदगी, वाह!’ ऐसी ही 333 कहानियों का संकलन है, जो आपके जीवन से जुड़ी हैं।
यह सीखों, नीतिकथाओं, सत्यों और बुद्धिमत्ता की पुस्तक है। यह पुस्तक कॉलेज के विद्यार्थियों, माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी और उस किसी भी व्यक्ति द्वारा अवश्य पढ़ी जानी चाहिए, जो जिंदगी की धूप-छाँव और लुका-छिपी के खेल से निराश हो जाता है; उसके मन में एक आशावाद जगाकर उसके जीवन में आमूलचूल परिवर्तन करने की क्षमता रखती है यह पुस्तक।
जीवन के सुख-दुःख, लाभ-हानि, उन्नति-अवनति और हर रंग की छटा लिये इन प्रेरणाप्रद-रोचक कहानियों को पढ़कर आप बरबस ही कह उठेंगे—‘वाह जिंदगी, वाह!’
सुनील हांडा (हैदराबाद पब्लिक स्कूल, बीई-बिट्स पिलानी, एम.बी.ए.—आई.आई.एम., अहमदाबाद) पैकेजिंग और दवा उद्योग जगत् के एक स्थापित और सम्मानित उद्यमी हैं।विगत 19 वर्षों से इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, अहमदाबाद में बतौर विजिटिंग फैकल्टी और एल.ई.एम. यानी उद्यमशीलता की प्रेरणा की प्रयोगशाला का कोर्स चलाते हैं।एक स्थायी कोष से मिले चंदे की मदद से उन्होंने ‘एकलव्य एजुकेशन फाउंडेशन’ (एकलव्य) की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य पेशेवर, अभिनव और रचनात्मक दृष्टिकोण के जरिए भारत की स्कूली शिक्षा में आमूल परिवर्तन करना है। अहमदाबाद में एकलव्य एक K-12, आई.सी.एस.ई., अंग्रेजी माध्यम का को-एजुकेशन स्कूल चलाता है।हांडा मानते हैं कि शिक्षा एक बुनियादी ढाँचा है और देश के लिए इसका महत्त्व उतना ही है, जितना सड़क, बिजली और दूरसंचार का होता है। प्रगतिशील देशों ने शिक्षा के क्षेत्र में एक रणनीति के तहत दीर्घकालिक आधार पर निवेश किया है।