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इस पुस्तक में उन प्रश्नों का उत्तर तलाशने की कोशिश की गई है, जो पिछले लगभग आठ सौ साल के इतिहास में से पैदा हुए हैं। ये प्रश्न इस देश में प्रेतात्माओं की तरह घूम रहे हैं। इन प्रश्नों का सही उत्तर न दे पाने के कारण ही देश का विभाजन हुआ और इसी के कारण आज देश में अलगाववादी स्वर उठ रहे हैं। ऐसा नहीं कि भारत इन प्रश्नों का उत्तर देने में सक्षम नहीं है। ऐसे प्रश्न हर युग में उत्पन्न होते रहे हैं और उस काल के ऋषि-मुनियों ने उनका सही उत्तर भी दिया, जिसके कारण समाज में भीतरी समरसता बनी रही; लेकिन वर्तमान युग में जिन पर उत्तर देने का दायित्व आया, उनकी क्षमता को संकुचित राजनैतिक हितों ने प्रभावित किया और वे जानबूझकर या तो इन प्रश्नों का गलत उत्तर देने लगे या फिर गलत दिशा में खड़े होकर उत्तर देने लगे। ऐसे उत्तरों ने भारत के सांस्कृतिक परिदृश्य को धुँधला किया और आमजन को दिग्भ्रमित किया। इस पुस्तक में राजनीति की संकुचित सीमाओं से परे रहकर प्रख्यात समाजधर्मी इंद्रेश कुमार ने इन प्रश्नों से सामना किया है। आशा करनी चाहिए कि इस मंथन और संवाद से जो निकष निकलेगा, वह देश के लिए श्रेयस्कर होगा।
वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों का वस्तुपरक व चिंतनपरक अध्ययन व व्यावहारिक उत्तर देने का सफल प्रयास है यह पुस्तक।
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अनुक्रम
भूमिका : हरि कथा अनंता — Pg. 5
1. समरसता — समाज की संजीवनी — Pg. 13
2. चरित्र निर्माण में शिक्षा का महव — Pg. 19
3. हिंदुत्व पर हो रहे हमले को समझिए — Pg. 24
4. राम : प्रत्येक युग के एक क्रांतिकारी कथानक हैं — Pg. 33
5. सेकुलरिज्म का जनक है हिंदुत्व — Pg. 41
6. कैरियरिज्म और नैशनलिज्म को समझें युवा — Pg. 46
7. भारतीय महान् जनक्रांति सन् 1857 का संदेश — Pg. 57
8. साहित्य का मर्म — Pg. 63
9. ‘आम आदमी’ कैसा सोचता है? — Pg. 67
10. कुछ प्रेरणादायी प्रसंग — Pg. 74
11. भ्रष्टाचार रूपी राक्षस से जूझता भारत — Pg. 80
12. मतांतरण से राष्ट्रांतरण होता है — Pg. 93
13. भारत ही माता है — Pg. 98
14. भारतीय संस्कृति : विश्व बंधुत्व एवं विश्व शांति की गारंटी है — Pg. 105
15. नारी सशतीकरण एवं सैन्य मातृशति कार्य — Pg. 113
16. हिंदुत्व — ईश्वर प्रदा, मानवीय एवं प्राचीनतम जीवन पद्धति है — Pg. 117
17. भारत में स्वदेशी एवं विदेशी पंथों में समन्वय का आधार — Pg. 131
18. भारत के अंग्रेजों द्वारा किए गए सात विभाजनों का इतिहास — Pg. 146
19. राष्ट्र की समस्याओं के समाधान एवं प्रगति का मार्ग है राष्ट्रीयता — Pg. 153
20. हिमालय परिवार — एक अवधारणा की जन्म कथा — Pg. 168
21. माउंट एवरेस्ट नहीं सागर माथा — Pg. 180
22. हिंदुस्तान में नेपालियों के प्रति हिंदुओं को चिंता यों — Pg. 183
एक प्रखर वक्ता और ओजस्वी संगठक के रूप में विख्यात श्री इंद्रेश कुमार बाल्यकाल से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हैं। कैथल (हरियाणा) में जनमे इंद्रेशजी ने इंजीनियरिंग स्नातक की उपाधि गोल्ड मेडल के साथ अर्जित की। पढ़ाई पूरी होने के पश्चात् आजन्म देशसेवा का व्रत लिया। दिल्ली में वे नगर प्रचारक, जिला प्रचारक, विभाग प्रचारक और फिर प्रांत प्रचारक बने। उन्हें हिमाचल प्रदेश और जम्मू एवं कश्मीर प्रांतों (तत्कालीन हिमगिरि प्रांत) में प्रांत प्रचारक के रूप में कार्य करने का सुअवसर मिला। बाद में संपूर्ण उत्तर भारत के प्रचार/संपर्क प्रमुख, फिर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह-संपर्क प्रमुख रहे।
कश्मीर घाटी में आतंक को रोकने के लिए विभिन्न धर्मयात्राओं को प्रारंभ करने के उनके अभियान को भारी जनसहयोग मिला और कालांतर में ये धर्मयात्राएँ एक विराट् जनांदोलन के रूप में उभरकर सामने आईं।
दिल्ली के प्रसिद्ध झंडेवाला देवी मंदिर की जमीन का आंदोलन हो, जम्मू-कश्मीर में ग्राम समितियों का गठन हो, भारत जोड़ो अभियान हो, अंदमान की स्वराज यात्रा हो अथवा तिब्बत मुक्ति आंदोलन—इंद्रेशजी के मार्गदर्शन में अनेकानेक कार्यक्रमों ने सहज ही विराट् जनांदोलन का रूप ले लिया।
इनके असाधारण मार्गदर्शन और संयोजन ने अनेक सामाजिक और राष्ट्रीय विचारधारा से ओत-प्रोत संगठनों को नवजीवन दिया है। ऐसे ही कुछ प्रसिद्ध संगठन हैं—मुसलिम राष्ट्रीय मंच, राष्ट्रीय सुरक्षा जागरण मंच, हिमालय परिवार और भारत तिब्बत सहयोग मंच।
संप्रति राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य।