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योग द्वारा स्वस्थ जीवन—बी.के.एस. आयंगर‘योग’ एक तपस्या है। शरीर को निरोग एवं सशक्त बनाने की एक संपूर्ण विधि है ‘योग’। योग असाध्य रोगों को भी दूर भगाता है। आज संसार भर के लोग योग और इसके चमत्मकारी प्रभावों के प्रति आकर्षित हैं। विश्वप्रसिद्ध योगगुरु बी.के.एस. आयंगार की इस पुस्तक ‘योग द्वारा स्वस्थ जीवन’ में आसन किस प्रकार किए जाएँ, किस प्रकार होनेवाली गलतियों को टाला जा सकता है और अधिकतम लाभ प्राप्त किया जा सकता है, इन बातों को आम लोगों तक पहुँचाने का प्रयास किया गया है।
योग के द्वारा कैसे व्यक्तियों का उपचार किया जाए, इसका त्रुटिहीन अभ्यास करते हुए अधिकाधिक लाभ कैसे प्राप्त किया जाए—इसका सचित्र वर्णन किया गया है।
पुस्तक का उपयोग करना आसान व सरल हो, इस दृष्टि से पुस्तक के अंत में दो परिशिष्ट जोड़े गए हैं। परिशिष्ट 1 में आसन क्रमांक और आसनों के नाम देकर उनका वर्गीकरण प्रस्तुत किया गया है। परिशिष्ट 2 में किस रोग में किस आसन से लाभ होगा, उनका वर्णन है।
स्वस्थ जीवन का मार्ग दिखानेवाली सरल-सुबोध भाषा में योग पर एक अनुपम कृति।
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क्रम-सूची
भूमिका — 7
पुस्तक की रचना एवं तत्संबंधी सूचनाएँ — 13
सिद्धता
1. निरामय जीवन की दिशा में — 19
2. योग : एक तपस्या — 23
3. चाहिए केवल मन की तैयारी — 27
4. जरूरत है साविक साधना की — 31
5. यम-नियम — 35
6. नियमावली — 38
हाथ
7. कर्तृत्व-संपन्न हाथ — 43
8. हाथों की क्रिया — 50
9. शरीर का गठन (कद) — 55
10. हस्तबंध — 60
11. हस्तमुद्रा-1 — 64
12. हस्तमुद्रा-2 — 70
13. गरदन का दर्द हरने के उपाय-1 — 76
14. गरदन का दर्द हरने के उपाय-2 — 81
15. गरदन की अंतर्वक्रता — 86
16. उत्तिष्ठ स्थिति में पश्चिम प्रतन — 91
17. झुकता उानासन — 96
18. स्नायुओं का समुचित गठन — 102
19. हाथों का विश्राम — 107
पैरों में दर्द
20. पैरों में दर्द — 115
21. पैरों का दर्शन — 119
22. पैरों में सदोषता — 125
23. सुप्त स्थिति में रीढ़ की रचना — 130
24. सुप्त पादांगुष्ठासन — 135
25. घुटनों के जोड़-1 — 141
26. घुटनों के जोड़-2 — 146
27. वीरासन — 151
28. उपयुत बद्धकोणासन — 156
29. उपयुत शवासन — 162
पीठ
30. पीठ का दर्द — 169
31. स्वस्थ कमर — 173
32. कमर दर्द का उपचार-1 — 178
33. कमर दर्द का उपचार-2 — 181
34. उत्तिष्ठ वर्ग के आसन-1 — 190
35. उत्तिष्ठ वर्ग के आसन-2 — 195
36. उत्तिष्ठ वर्ग की परिवृ क्रियाएँ — 201
37. त्रिविक्रम क्रिया — 209
38. पवनमुत क्रिया-1 — 216
39. पवनमुत क्रिया-2 — 222
पाचन संस्थान
40. अन्न मार्ग की निगरानी — 231
41. उपाश्रयी आसन — 235
42. सुप्त स्थिति के आसन — 242
43. शांति की ओर परायण — 249
44. पश्चिम प्रतन आसन — 256
45. परिवृ क्रिया — 263
सिर
46. सिर दर्द — 275
47. शिरोनेत्र पट्टबंध — 279
48. तनाव का प्रतिरोध — 287
49. विपरीत क्रिया — 295
श्वसन संस्थान
50. श्वसन मार्ग का स्वास्थ्य — 303
51. श्वसन संस्थान का स्वास्थ्य — 306
समापन — 314
परिशिष्ट 1 — 319
परिशिष्ट 2 — 322
जन्म 24 दिसंबर, 1918 को कर्नाटक के कोलार जिले के बेलूर नामक स्थान में हुआ। पंद्रह वर्ष की अल्पायु में योग सीखना प्रारंभ किया और 1936 में मात्र अठारह वर्ष की आयु में धारवाड़ के कर्नाटक कॉलेज में योग सिखाना प्रारंभ किया।
आजीवन योग के प्रति समर्पण एवं सेवाभाव के साथ निस्स्वार्थ कार्यरत; अनेक सम्मान एवं उपाधियों से विभूषित। वर्ष 1991 में ‘पद्मश्री’ और जनवरी 2002 में ‘पद्मविभूषण’ से सम्मानित। अगस्त 1988 में अमेरिका की ‘मिनिस्ट्री ऑफ फेडरल स्टार रजिस्ट्रेशन’ ने सम्मान-स्वरूप उत्तरी आकाश में एक तारे का नाम ‘योगाचार्य बी.के.एस. आयंगार’ रखा।
सन् 2003 में ‘ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी’ में आधिकारिक तौर पर नाम सम्मानित।
सन् 2004 में अमेरिकन ‘टाइम मैगजीन’ द्वारा ‘हीरोज एंड आइकंस’ उपशीर्षक से विश्व के सर्वाधिक शक्तिशाली और प्रभावशाली व्यक्तियों की सूची में सम्मिलित।
आधुनिक भारत के योग विषय के भीष्म पितामह के रूप में प्रसिद्धि। विश्व के अनेक ख्यात एवं लब्धप्रतिष्ठ व्यक्ति शिष्य रहे हैं।