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महाराष्ट्र में संत-परंपरा हमेशा से बनी रही है। लेकिन सबसे आगे हैं—श्री संत ज्ञानेश्वर! जीव, जगत् और जगदीश्वर—इनमें जो मायापटल रहता है वह ब्रह्मविद्या से नष्ट होता है और परब्रह्म का ज्ञान होता है—यही ‘अद्वैत सिद्धांत’ उन्होंने सरल करके बताया। वे सौंदर्यवादी कवि थे। उन्होंने मन का सौंदर्य, भाषा का सौंदर्य, प्राकृतिक सौंदर्य, अर्थ का सौंदर्य प्राप्त किया। मोक्ष की अपेक्षा करते हुए जीवन बिताना, यानी सफल जीवन का आनंद ही मोक्ष है—यह उन्होंने समाज को समझाया।
आज के विज्ञान-युग में ज्ञानेश्वर के उपदेशों का, तत्त्वज्ञान का क्या लाभ है? ‘ज्ञानेश्वरी’ काल-बाह्य तो नहीं है? उनका साहित्य इतिहास तो नहीं बन गया? ऐसे प्रश्न उपस्थित होते हैं। लेकिन उनके सभी ग्रंथों का मानसिक, प्राकृतिक, सामाजिक दृष्टि से जरा भी महत्त्व कम नहीं हुआ है। सौंदर्य तो कालातीत होता है। उनका साहित्य वर्तमान में महाराष्ट्र के हर परिवार में गोस्वामी तुलसीदास की ‘रामचरितमानस’ की तरह पढ़ा जाता है।
आज धनसत्ता, राजसत्ता, शस्त्रसत्ता का उपयोग समाज-विघटन के लिए हो रहा है। कहीं भी शांति नहीं है। भारतीय अध्यात्म व्यक्ति को मानसिक शांति प्रदान करता है। इसलिए अद्वैत का, अत्यानंद वैभव का, ब्रह्मानुभव का, परमात्म तत्त्व का, विश्व-व्यापकता का, आत्मशांति का संदेश देनेवाले संत ज्ञानेश्वर के वाड्.मय की आज नितांत आवश्यकता है। आशा है, सुधी पाठक इसका पारायण कर आत्म-शांति का अनुभव करेंगे।
जन्म : 21 दिसंबर, 1942 को बंबई में।
शिक्षा : एम.ए. (हिंदी), साहित्य रत्न।सौ. शुभांगी भडभडे मराठी की अत्यंत लोकप्रिय एवं प्रख्यात साहित्यकार हैं। पौराणिक, ऐतिहासिक और सामाजिक घटना-प्रतिघटनाओं से प्रभावित होकर अपनी खास शैली में लिखनेवालों में उनका नाम आदर के साथ लिया जाता है।
कृतियाँ : ग्यारह चारित्रिक तथा अठारह सामाजिक उपन्यास, पाँच कथा-संग्रह, बारह एकांकी। विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनुवाद कार्य के अतिरिक्त तीन नाटक और स्तंभ लेखन; साथ ही किशोर साहित्य। दूरदर्शन व आकाशवाणी पर नाटकों का प्रसारण तथा वार्त्ता आदि।
सम्मान-पुरस्कार : महाराष्ट्र साहित्य सभा का ‘कविता पुरस्कार’, विदर्भ साहित्य संघ का ‘एकांकी लेखन पुरस्कार’, साहित्य अकादमी, बड़ौदा का ‘कथा पुरस्कार’, ‘कै. सुमन देशपांडे बाल साहित्य पुरस्कार’, ‘बाल उपन्यास पुरस्कार’, अ.भा. नाट्य परिषद्, मुंबई का ‘एकांकी लेखन पुरस्कार’ तथा ‘सारांश’ कथा-संग्रह पर महाराष्ट्र सरकार का ‘उत्कृष्ट वाड्मय पुरस्कार’।