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प्रस्तुत कविता-संग्रह ‘युग गीत उसी के गाएगा’ श्री जय शंकर मिश्र की काव्य-यात्रा का सप्तम सोपान है। इसमें कुल 101 कविताएँ एवं गीत सम्मिलित किए गए हैं। श्री मिश्र का संपूर्ण रचना संसार उनकी निजी अनुभूतियों का ही प्राकट्य है। सूक्ष्म संवेदनाओं की सलिल सरिता उनके अंतस में निरंतर प्रवहमान रही है। इसीलिए इनकी रचनाओं में जहाँ प्रकृति अपनी संपूर्ण विविधता एवं समग्रता के साथ प्रतिबिंबित होती हुई दृष्टिगोचर होती है, वहीं दूसरी ओर जीवन-जगत्, प्रीति-प्रणय, समाज-संबंध एवं जीवन के लौकिक-अलौकिक पक्षों की भी विविधवर्णी आभा विद्यमान है। श्री मिश्र की कविताओं में भाषा की सहजता, सरलता एवं सुगमता के साथ ही अंतर्निहित पारिवारिक एवं सामाजिक समरसता की महत्ता, युग-मंगल की कामना, जीवन के उद्देश्यों के प्रति सतत चिंतन तथा परिवेश की विविध जटिलताओं के बावजूद जीवन को सौंदर्यमय एवं शिवमय बनाने की बलवती भावना रचनाकार को एक विशिष्ट पहचान देती है। सकारात्मकता और आशावाद से परिपूर्ण ये काव्य रचनाएँ पाठकों को मानवीय मूल्यों और संबंधों का बोध कराएँगी और कुछ ऐसा कर गुजरने के लिए प्रेरित करेंगी कि ‘युग गीत उसी के गाएगा’।
श्री जय शंकर मिश्र एक अत्यंत लोकप्रिय एवं कुशल प्रशासनिक अधिकारी के साथ-साथ अत्यंत संवेदनशील व्यक्ति एवं रचनाकार के रूप में भी जाने जाते हैं। उत्तर प्रदेश शासन एवं भारत सरकार के अनेक महत्त्वपूर्ण तथा चुनौतीपूर्ण दायित्वों का अत्यंत सजगता, क्षमता एवं कुशलता से निर्वहन करने के साथ-साथ संस्कृति एवं साहित्य की अनेक विधाओं में श्री मिश्र की अत्यधिक अभिरुचि है।
विभिन्न भाषाओं में लिखे जा रहे साहित्य के पठन-पाठन के अतिरिक्त भारतीय वाड.मय, उपनिषदों एवं दार्शनिक ग्रंथों के अध्ययन में उनकी गहरी अभिरुचि है। पूर्व में प्रकाशित चार काव्य-संग्रहों के अतिरिक्त श्री मिश्र की अंग्रेजी भाषा में ‘ए क्वेस्ट फॉर ड्रीम सिटीज’, ‘महाकुंभ : द ग्रेटेस्ट शो ऑन अर्थ’, ‘हैप्पीनेस इज ए चॉइस चूज टू बी हैप्पी’ एवं इसका हिंदी भावानुवाद ‘24×7 आनंद ही आनंद’ आदि प्रकाशित हो चुकी हैं। ये रचनाएँ भी सुधी पाठकों द्वारा अत्यधिक अभिरुचि एवं आह्लाद के साथ स्वीकार की गई हैं।