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आजादी के मूल्य युद्ध में अंग्रेजों के खिलाफ कुछ लोग गुलामों के नेता थे। उन्होंने शेर की माँद में घुसकर शेर को मारने के गुर सीखे थे। उन्हें विवेकानंद, गांधी, दयानंद सरस्वती, अरविंद, रवींद्रनाथ, तिलक, मौलाना आजाद, भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुभाष बोस, राममनोहर लोहिया, जयप्रकाश, राजेंद्र प्रसाद वगैरह कहा जाता है। इनकी आँखों में उनके लिए आँसू के सपने थे, जिनके घरों के आस-पास मोरियाँ बजबजाती हैं; जिनकी बेटियाँ शोहदों द्वारा देश-विदेश में बेची जाती हैं; जिनकी देह में खून कम और पसीना ज्यादा झरता है; जो किसी सभ्य समाज की बैठक में शरीक होने के लायक नहीं समझे जाते; जो जंगलों में जानवरों की तरह व्यवस्था और विद्रोहियों—दोनों के द्वारा बोटी-बोटी काटे जाते हैं; जिन्हें आजादी ‘स्व-राज’ के अर्थ में मिलनी थी, उनमें ‘स्व’ ही नहीं बचा; जिन्हें विवेकानंद ‘सभ्य अजगर’ कहते थे, वे ही गांधी के अंतिम व्यक्ति को कीड़े-मकोड़े समझकर लील रहे हैं।
—इसी पुस्तक से
समाज की विद्रूपताओं के दंश को अपनी कलम से उकेरनेवाले वरिष्ठ कलमकार कनक तिवारी विगत पचास वर्षों से निरंतर लेखन में रत हैं। समाज, राजनीति, शिक्षा, प्रशासन, सरकार, संस्थान, ऐसा कोई क्षेत्र नहीं, जिस पर इन्होंने झकझोर देनेवाले विचार न व्यक्त किए हों। पाठक के अंतर्मन को स्पर्श करनेवाली पठनीय कृति।
जन्म : 26 जुलाई, 1940।
शिक्षा : रविशंकर विश्वविद्यालय से एल-एल.बी. की परीक्षा में स्वर्ण पदक।
कृतित्व : ‘छत्तीसगढ़ राष्ट्रभाषा प्रचार समिति’ के कार्यकारी अध्यक्ष, ‘मध्य प्रदेश लघु उद्योग निगम’ तथा ‘मध्य प्रदेश गृह-निर्माण मंडल’ के अध्यक्ष रहे।
रचना-संसार : ‘संविधान का सच’, ‘काल इनमें ठहर गया है’, ‘फिर से हिंद स्वराज’, ‘बस्तर-लाल क्रांति बनाम ग्रीन हंट’, ‘हिंद स्वराज का सच’, ‘विवेकानंद का जनधर्म’, ‘गांधी और पंचायती राज’, ‘छत्तीसगढ़ के विवेकानंद’, गांधी का देश’ तथा ‘संविधान की पड़ताल’।
संप्रति : अध्यक्ष, हिंद स्वराज शोधपीठ, कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता तथा जनसंचार विश्वविद्यालय, रायपुर। संयोजक, छत्तीसगढ़ संस्कृति फाउंडेशन तथा संरक्षक संस्कार (साहित्यिक तथा सांस्कृतिक संस्था)।
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन, बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया, छत्तीसगढ़ बार एसोसिएशन, इंडियन लॉ इंस्टीट्यूट और इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ ज्यूरिस्ट्स के सदस्य।